बस्तर में शहीद गुण्डाधुर के बलिदान दिवस के रूप में हर साल सर्व आदिवासी समाज आज 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाता है. इस साल भी सर्व आदिवासी समाज ने भूमकाल दिवस धूमधाम से मनाया।भूमकाल स्मृति दिवस के 115 वीं वर्षगांठ के मौके पर बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोगों ने शहर में रैली निकाली जिसके बाद शहर के सीरासार परिसर में विशाल जनसभा का आयोजन भी किया गया।दरअसल देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ बस्तर में संघर्ष का शंखनाद करते हुए भूमकाल की शुरूआत की गई थी.
समाज के लोगों ने बताया कि ‘भूमकाल यानी जमीन से जुड़े लोगों का आंदोलन, जिसमें भूमकाल के महानायक शहीद गुण्डाधुर, डेबरीधूर और अन्य क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया था.’ आज इन्हीं क्रांतिकारियों को हजारों आदिवासियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की. इस मौके पर शहर में विशाल रैली निकाली गई और शहर के सीरासार परिसर में आदिवासी समाज के अध्यक्षों ने जनसभा को संबोधित किया।इस दौरान भूमकाल स्मृति दिवस के संयोजक कुमार जयदेव ने बताया कि ‘1910 के क्रांतिकारियों की याद में भूमकाल स्मृति दिवस मनाया जाता है,
उन्होंने कहा कि इस दिन अंग्रेजों ने हजारों आदिवासियों और अन्य समाज के क्रांतिकारियों की निर्माण हत्या कर दी थी,उन्होंने गोल बाजार स्थित इमली पेड़ को धरोहर के रूप में संरक्षित करने की भी मांग करते हुए कहा कि इस पेड़ में कई आदिवासियों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।कुमार जयदेव में 10 फरवरी को शासकीय अवकाश घोषित करने की मांग सरकार से की है,ताकि आदिवासी और अन्य समाज इसे दिन को संगठित होकर मना सके ।
स्विट्जरलैंड से आई दंपति ने भी इस आयोजन में भाग लिया उन्होंने कहा कि उन्हें छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति ने बेहद प्रभावित किया है। स्विस महिला सोफी ने कहा कि वह एक आर्कियोलॉजिस्ट है और वह बेहद सौभाग्यशाली है कि वह सही मौके पर सही जगह मौजूद है।