छत्तीसगढ़ प्रदेश के न्यायधानी बिलासपुर में संचालित महर्षि विश्वविद्यालय आफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के कुलपति की नियुक्ति को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता व पत्रकार जितेंद्र साहू ने राज्यपाल सचिवालय सहित उच्च अधिकारियों को शिकायत पत्र भेजी है शिकायतकर्ता के अनुसार विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(UGC) 2018 के निर्देशों की अनदेखी की गई है।
शिकायतकर्ता के आरोप के अनुसार महर्षि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर कंडरा की नियुक्ति के दौरान उनके पास महाविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर पदस्त रहे गए कार्यकाल के 10 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव नही था साथ ही महाविद्यालय में प्राध्यापक से पहले सह-प्राध्यापक का अनुभव अनिवार्य था।
शिकायतकर्ता के अनुसार महर्षि विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति पूर्व में सेना के ऑफिसर थे और सेवानिवृत्त के बाद कई शैक्षणिक मैनेजमेंट संस्थानों में सक्रिय रहे और शोध पत्र भी प्रकाशित करवा चुके हैं RTI के तहत प्राप्त दस्तावेजों के अवलोकन से स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि शैक्षणिक योग्यता और सेवानिवृत्त होने के बाद 10 वर्षों का अनुभव सहित सभी क्रियाकलापों के समय अवधि में भिन्नता स्पष्ट है।
शिकायतकर्ता ने यूजीसी यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का जिक्र करते हुए नियम और निर्देशों में अनदेखी का आरोप लगाया है जो त्वरित जांच का विषय है। उल्लेखनीय है विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” (University Grants Commission). यह भारत सरकार का एक वैधानिक निकाय है जो उच्च शिक्षा में मानकों को बनाए रखने, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान देने, और अन्य शैक्षणिक कार्यों को बढ़ावा देने का काम करता है. और इन्हीं निर्देश और नियमों के अनुसार विश्वविद्यालय में कुलपति की भर्ती की जाती है।
इस मामले में RTI के माध्यम से भी जवाब मांगा, लेकिन संतोषजनक प्रतिक्रिया न मिलने पर उन्होंने उच्च स्तर पर जांच की मांग की है। उनका कहना है कि यदि डॉ. कंडरा की नियुक्ति नियमों का उल्लंघन कर हुई है तो इसे तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए।
नियुक्ति के समय दिए गए दस्तावेजों के अनुसार डॉ. कांडरा का दावा है कि वे सेना से सेवानिवृत्ति के बाद विभिन्न मैनेजमेंट संस्थानों में सक्रिय रहे हैं और कई शोध पत्र भी प्रकाशित कर चुके हैं। हालांकि, दस्तावेजों में उनकी कुलपति पद की योग्यता स्पष्ट नहीं हो सकी है, जो विवाद को और बढ़ावा दे रही है।
डॉक्टर कांडरा की नियुक्ति को लेकर जांच समिति भी गठन की गई थी जांच समिति में मुख्य रूप से प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल कुलपति गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर अध्यक्ष, प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल कुलपति पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर सदस्य, प्रो. ललित प्रकाश पटेरिया कुलपति नंद कुमार पटेल विश्वविद्यालय रायगढ़ सदस्य थे। जिसमें आज दिनांक तक किसी भी प्रकार की निर्णय नहीं ली गई है क्योंकि डॉक्टर कांडरा का कार्यकाल मुश्किल से 6 से 7 माह ही बचे हैं।
यह मामला शिक्षा के क्षेत्र में नियुक्ति की पारदर्शिता और नियमों के पालन की अनिवार्यता को लेकर बड़ा सवाल खड़ा करता है। राज्य शासन और विश्वविद्यालय प्रशासन से उम्मीद की जा रही है कि वे जल्द इस आरोप की निष्पक्ष जांच कर आवश्यक कार्रवाई करते हुए मामले का पटाक्षेप करेंगे ताकि विश्वविद्यालय की छवि और शैक्षणिक गुणवत्ता पर कोई प्रश्नचिह्न न उठे, पारदर्शिता और नियमों के कड़ाई से पालन को भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है ताकि हर शैक्षणिक संस्थानों में होने वाली नियुक्तियों में नियम और निर्देशों का निष्ठापूर्वक अनुपालन हो