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दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) अब वक्त की जरूरत बन चुकी है। कोर्ट ने कहा कि देश में ऐसे कई कानूनी मामले सामने आ रहे हैं जहां पर्सनल लॉ (व्यक्तिगत धार्मिक कानून) और क्रिमिनल लॉ के बीच सीधा टकराव है — खासकर बाल विवाह जैसे संवेदनशील मामलों में।
कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ के तहत कुछ समुदायों में नाबालिगों की शादी को वैध माना जाता है, जबकि POCSO एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट) के अनुसार 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ विवाह या यौन संबंध गंभीर आपराधिक कृत्य है।
क्यों ज़रूरी है UCC?
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स्पष्टता: सभी नागरिकों के लिए समान नियम होंगे — चाहे धर्म कुछ भी हो।
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महिला अधिकारों की सुरक्षा: महिलाओं और बच्चियों को व्यक्तिगत कानूनों में मिलने वाले भेदभाव से राहत।
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कानूनी टकराव खत्म: पर्सनल लॉ और क्रिमिनल लॉ के बीच विरोधाभास से बचाव।
पृष्ठभूमि:
यह टिप्पणी एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी के मामले में आई, जिसमें लड़की की उम्र 16 साल थी। परिवार के अनुसार, शादी धार्मिक कानूनों के तहत वैध थी, लेकिन पॉक्सो एक्ट के अनुसार यह बाल शोषण की श्रेणी में आता है।
🇮🇳 केंद्र सरकार की भूमिका:
हाईकोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार को संकेत दिया कि UCC पर गंभीरता से विचार करने का यह उपयुक्त समय है। हालांकि सरकार ने अब तक इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है।