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दिल्ली हाई कोर्ट ने ED के जांच अधिकारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट की कठोर टिप्पणियों को डिलीट करने का आदेश दिया है. जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि सरकारी अधिकारी के खिलाफ ऐसी टिप्पणियां जायज नहीं हैं क्योंकि ये आधिकारिक रिकॉर्ड और करियर पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं.
ED ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत और समय होने के बावजूद भी ED ने उसे पकड़ नहीं पाया, ट्रायल कोर्ट ने कहा कि ED ने ‘सनकी और आलसी’ तरीके से मामले की जांच की है.
19 अक्टूबर को ट्रायल कोर्ट ने ED को फिर दोषी ठहराया. ट्रायल कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट नहीं फाइल करने से पता चलता है कि ED की हालत कितनी खराब है, इस तरह का आलसी व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है और ED बहुत लापरवाह और ढीला व्यवहार अपना रही है, और कोर्ट में जांच अधिकारी नहीं था.
ED ने हाई कोर्ट में ट्रायल कोर्ट की टिप्पणी को चुनौती दी. ED के वकील ने कोर्ट को बताया कि ना केवल फरार आरोपी के खिलाफ समन जारी किए गए, बल्कि उसके स्थान पर जाकर उसके बारे में पता लगाया गया था. इसके बाद जांच अधिकारी ने ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन से लुकआउट सर्कुलर जारी करने की अपील की है, वहीं रोज की जांच में ED के डायरेक्टर की कोई भूमिका नहीं होती है.
हाई कोर्ट ने इस बात पर भी सहमत हुआ कि आरोपी को कोर्ट में पेश होना अनिवार्य नहीं है; हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी अधिकारी को लगातार कोर्ट में पेश होने का दबाव बनाना ठीक नहीं है; हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की तीखी टिप्पणियों को हटा दिया जाए.