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मैहर/ मध्यप्रदेश मैहर नगर पालिका क्षेत्र के अंतर्गत अपनी रोज़ी-रोटी चला रहे ठेला व्यवसायियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। स्थानीय प्रशासन द्वारा बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था किए इन व्यवसायियों को हटाए जाने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इससे क्षेत्र के गरीब और बेरोजगार तबके के सामने भुखमरी और रोज़गार संकट गहराने का खतरा पैदा हो गया है। इस मामले को गंभीरता से उठाते हुए जनपद पंचायत मैहर के उपाध्यक्ष विकास त्रिपाठी ने तहसीलदार, नगरपालिका CMO को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में कहा गया है कि ठेला व्यवसाय गरीबों और बेरोजगारों का सहारा है। यह उनका जीवनयापन का मुख्य साधन है। ऐसे में बिना कोई विकल्प दिए उन्हें हटाना अन्यायपूर्ण ही नहीं, बल्कि अमानवीय भी है। ज्ञापन में कहा गया है कि ठेला हटाने की कार्रवाई यदि अतिक्रमण हटाने के उद्देश्य से की जा रही है तो भी इन व्यवसायियों को पहले वैकल्पिक स्थान उपलब्ध कराना प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है। इनकी रोज़ी-रोटी से जुड़े परिवारों का भविष्य दांव पर लगाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। विकास त्रिपाठी ने अपने पत्र में स्पष्ट उल्लेख किया है कि जब प्रशासनिक अमले द्वारा इन ठेलों को हटाया जाता है तो छोटे व्यापारी अपनी कमाई का साधन खो देते हैं। कई परिवारों के सामने भरण-पोषण का संकट खड़ा हो जाता है। प्रशासन को चाहिए कि ऐसी कार्रवाई करने से पहले प्रभावित व्यवसायियों को वैकल्पिक जगह मुहैया कराए ताकि वे सम्मानजनक तरीके से अपनी जीविका चला सकें।जनपद उपाध्यक्ष ने यह भी कहा है कि न्यायालयों के आदेश और सरकारी नियमों के अनुसार भी इस तरह की कार्रवाई से पहले प्रभावित लोगों को वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराना आवश्यक है। मैहर जैसे नगर में जहां पहले से ही बेरोज़गारी की समस्या गहराई हुई है, वहां ठेला व्यवसायियों को हटाना उनकी कठिनाइयों को और बढ़ा देगा। ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया है कि पिछले माह एक ओर से केबिन किराए पर दिए गए थे, वहीं दूसरी ओर ठेलों को हटाने की कार्रवाई की जा रही है। इस दोहरे रवैये से गरीब तबके में असंतोष पनप रहा है। विकास त्रिपाठी ने प्रशासन से मांग की है कि इस मामले को संवेदनशीलता के साथ देखा जाए। गरीब और बेरोजगार तबके को सड़क पर लाकर खड़ा करने की बजाय उन्हें राहत और सहारा दिया जाए। उन्होंने चेतावनी भी दी है कि यदि प्रशासन ने इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया और बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए ठेला व्यवसायियों को उजाड़ने का प्रयास जारी रखा, तो विवश होकर ठेला व्यवसायी और जनप्रतिनिधि एकजुट होकर जन आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे। यह मुद्दा अब सिर्फ ठेला व्यवसायियों का नहीं रह गया है, बल्कि पूरे समाज की संवेदनाओं से जुड़ चुका है। सवाल यह है कि जब सरकार और प्रशासन गरीबों व बेरोजगारों की मदद करने के दावे करती है, तो क्या उनकी रोज़ी-रोटी छीनना उस दावे के विपरीत नहीं है?