सरपंच द्वारा अपने पति कोई बनाया गया वेंडर, पति को वेंडर बता कर लाखों रुपयो का राशि किया गया आहरण, डंगनीया पंचायत में फर्जी वाड़ा का दर्जनों लिस्ट

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बिलासपुर – मस्तूरी जनपद पंचायत अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत डंगनिया में लाखों रुपयों का हेराफेरी व भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है सरपंच उमा कुर्रे ने अपने पति लक्ष्मी प्रसाद कुर्रे को वेंडर बनाकर 14वें व 15 वें वित्त की राशि को गबन करने की नियत से,फर्जी बिल लगाकर लाखों रूपये (राशि) का गबन किया गया है। वही ग्राम पंचायत डंगनिया में भारी भ्रष्टाचार किया गया है,जिससे गांव विकास कार्य में पिछड़ा हुआ है।

आपको बता दें शासकीय कर्मचारी सचिव के मिलीभगत होने के कारण ग्राम पंचायत डंगनिया में लाखों रूपये का भ्रष्टाचार कर राशि का बंदर बाँट किया गया है, क्योंकि भ्रष्टाचार का रास्ता सरपंच के साथ साथ सचिव भी किया है दोनों के मिलीभगत से डंगनिया पंचायत में उक्त धांधली किया गया है।

सरपंच पति लक्ष्मी प्रसाद कुर्रे के नाम से पंचायत में किए गए कार्यों के निर्माण हेतु मटेरियल, मजदूरी सहित अन्य कार्यों का भुगतान किया गया है सरपंच ने अपने पति को वेंडर बताकर फर्जी बिल तैयार कर लाखों की राशि भुगतान कराए गये है। अगर इसकी जांच किया जाता है तो सरपंच ही दोषी पाया जाएगा। सरपंच के परिवार से कई लाखों रुपए के फर्जी बिल लगाकर मटेरियल या अन्य मदों से ग्राम पंचायत की राशियों का गबन किया गया है। सरपंच के इन फर्जी कार्यों में अधिकारियों का भी पूर्ण सहयोग रहता है?

क्योंकि सरपंच के परिवार को जनपद पंचायत के अधिकारी व इंजीनियर द्वारा नाजायज एवं अनुचित लाभ जानबूझकर पहुंचाया गया है। जबकि शासन के नियम में पंचायत राज व्यवस्था के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों के रिश्तेदार को पंचायत निधि से किसी भी प्रकार का लाभ नहीं दिला सकतें है

यह कहता है पंचायत राज अधिनियम एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 पर नजर डाले तो उक्त अधिनियम के पृष्ठ क्रमांक 189 में धारा 69 के अंतर्गत अध्याय 8 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि त्रि-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों के रिश्तेदार किसी भी प्रकार का लाभ वाला कार्य नहीं करेंगे। अधिनियम अंतर्गत धारा 40 में ऐसा करने पर जो प्रावधान दिये गये हैं, उसमें शासकीय सेवकों व जनप्रतिनिधियों को पद से पृथक करने के अलावा राशि की वसूली के साथ चुने हुए प्रतिनिधियों को 6 वर्ष के लिए चुनाव लडने से वंचित करने का प्रावधान हैं।

 

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