जम्मू-कश्मीर के रुझानों में NC-कांग्रेस की सरकार:फारूक ने कहा- उमर अब्दुल्ला होंगे अगले मुख्यमंत्री; महबूबा की बेटी ने PDP की हार स्वीकारी

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के रुझानों में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनती नजर आ रही है। गठबंधन 46 सीटों पर आगे चल रहा है। नेशनल कांफ्रेंस ने 41 सीटों पर लीड बना रखी है, वहीं कांग्रेस 5 सीट पर आगे है। फारूक अब्दुल्ला ने कहा- उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के अगले CM होंगे।

भाजपा 29 और पीडीपी 4 सीटों पर आगे है। निर्दलीय और छोटी पार्टियां 9 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। 90 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला दो सीट पर चुनाव लड़े। बडगाम में उन्हें जीत मिली, गांदरबल पर आगे चल रहे हैं। महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती श्रीगुफवारा-बिजबेहरा सीट से पीछे हैं। उन्होंने कहा- मैं लोगों के फैसले को स्वीकार करती हूं। उधर भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना नौशेरा सीट से हार गए हैं।

जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से 1 अक्टूबर तक 3 फेज में 63.88% वोटिंग हुई थी। 10 साल पहले 2014 में हुए चुनाव में 65% वोटिंग हुई थी। इस बार 1.12% कम वोटिंग हुई।

5 अक्टूबर को आए एग्जिट पोल में 5 सर्वे में NC-कांग्रेस की सरकार को बहुमत दिया था। 5 एग्जिट पोल में हंग असेंबली का अनुमान जताया गया है। यानी छोटे दल और निर्दलीय विधायक किंगमेकर होंगे।

नेशनल कांफ्रेंस चीफ फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर में अपने घर पर हाथ उठाकर समर्थकों का अभिवादन किया।

जम्मू वेस्ट सीट से भाजपा कैंडीडेट अरविंद गुप्ता ने कांग्रेस के मनमोहन सिंह को 21360 वोटो से हराया।

बसोहली विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी लाल सिंह हार गए हैं। यहां भाजपा के दर्शन कुमार करीब 16 हजार वोटों से जीते। चौधरी लाल सिंह ने 2014 में भाजपा से चुनाव लड़ा और जीता भी था।

हजरतबाल विधानसभा सीट से नेशनल कांफ्रेंस उम्मीदवार सलाम सागर को जीत मिली। उन्होंने पीडीपी की सीनियर लीडर आशिया नक्श को हराया।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव नतीजों के रुझानों पर जम्मू-कश्मीर भाजपा के सह-प्रभारी आशीष सूद ने कहा, “लोगों का जो भी फैसला होगा, हम उसे स्वीकार करेंगे लेकिन अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। अभी बहुत कुछ होना बाकी है।

29 साल की शगुन परिहार किश्तवाड़ सीट से आगे चल रही हैं। वह भाजपा की युवा कैंडिडेट हैं। शगुन भाजपा नेता अनिल परिहार की भतीजी हैं। 2008 में हिजबुल मुजाहिद्दीन ने एक आतंकी हमले में अनिल परिहार की हत्‍या कर दी थी। इसी आतंकी हमले में शगुन के पिता की भी मौत हो गई थी।

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बनी से डॉ रमेश्वर सिंह आगे।

बांदीपोरा से उस्मान अब्दुल माजिद आगे।

छांब से सतीश शर्मा आगे।

रफियाबाद से मुजफ्फर अहमद डार।

सूरनकोट से मोहम्मद अकरम आगे।

थानामंडी से इकबाल खान आगे।

उधमपुर ईस्ट से पवन खजुरिया आगे।

उधमपुर वेस्ट से जसवीर सिंह आगे।

पीडीपी के साथ किसी संभावित गठबंधन के बारे में पूछे जाने पर नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा, न तो हमने उनसे कोई समर्थन मांगा है और न ही हमें कोई समर्थन मिला है। पता नहीं लोग इतने बेचैन क्यों हैं, रिजल्ट आने दीजिए। अभी हमें उनके समर्थन की जरूरत नहीं है।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला शुरुआती रुझानों में दोनों सीटों पर आगे चल रहे हैं। वह बडगाम और गांदरबल से चुनाव लड़ रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष और नौशेरा सीट से उम्मीदवार रवींद्र रैना ने काउंटिंग से पहले हवन किया। उन्होंने कहा, ‘हमें पूरा भरोसा है कि भाजपा और उसके समर्थक दल बहुमत से चुनाव जीतेंगे। हम 30-35 सीटें जीतेंगे।’

पूर्व डिप्टी सीएम और भाजपा नेता कविंदर गुप्ता ने कहा कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी और चुनाव जीतेगी। उन्होंने कहा, ‘भाजपा जम्मू-कश्मीर में लोगों को विकास के रास्ते पर ले गई है, उन्हें पत्थरबाजी से दूर किया है। उन्हें अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार और वंशवाद से मुक्त कराया है। हम बुलेट से बैलेट की ओर बढ़े हैं। इसलिए लोगों ने भाजपा को वोट दिया है।’

जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने विधानसभा चुनाव की मतगणना से पहले हवन किया। रविंदर रैना नौशेरा विधानसभा से उम्मीदवार हैं। उनके खिलाफ नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) से सुरिंदर चौधरी और PDP से हक नवाज मैदान में हैं। 2014 के चुनावों में रविंदर रैना ने सुरिंदर चौधरी को 9,503 वोटों के अंतर से हराकर सीट जीती थी।

अनंतनाग जिले की बिजबेहरा सीट मुफ्ती परिवार का गढ़ मानी जाती है। इस बार यहां से महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती चुनाव लड़ रही हैं। 1967 से लेकर अब तक 9 विधानसभा चुनावों में 6 बार मुफ्ती परिवार या PDP कैंडिडेट की जीत हुई है।

हालांकि, 2014 में PDP कैंडिडेट अब्दुल रहमान सिर्फ 2,868 वोटों से ही जीत सके थे। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में महबूबा मुफ्ती अनंतनाग से हार गई थीं। जम्मू-कश्मीर की राजनीति को समझने वाले एक्सपर्ट कहते हैं बिजबेहरा सीट पर इल्तिजा मुफ्ती को कड़ी टक्कर मिल रही है।

PDP के लिए ये सीट खतरे में दिख रही है। उनकी टक्कर NC के बशीर अहमद से है। बशीर के पिता भी 3 बार विधायक रहे हैं। लोकसभा चुनाव में एक बार पूर्व CM मुफ्ती मोहम्मद सईद को हरा भी चुके हैं।

गांदरबल सीट पर अब्दुल्ला परिवार का कब्जा रहा है। इस बार यहां से पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चुनाव मैदान में हैं। उनके दादा शेख अब्दुल्ला 1977 और पिता फारूक अब्दुल्ला 1983, 1987 और 1996 में यहां से जीत चुके हैं।

NC को इस सीट पर 1977 से लेकर 2014 के तक सिर्फ एक हार मिली है। 2008 में जब ​उमर पहली बार सीएम बने थे, तब वे भी इसी सीट से चुनाव जीते थे। उनके सामने PDP के बशीर अहमद मीर मैदान में हैं।

2014 में उन्होंने कंगन सीट से चुनाव लड़ा था और NC के मियां अल्ताफ को कड़ी टक्कर दी थी। बशीर 2000 से भी कम वोटों से हारे थे। इस बार कंगन सीट एससी के लिए रिजर्व है, इसलिए बशीर गांदरबल से चुनाव लड़ रहे हैं। इनकी भी अच्छी पकड़ मानी जाती है।

2014 में NC से ही इसी सीट पर विधायक रहे शेख इश्फाक जब्बार भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इनके अलावा अब्दुल्ला के सामने कश्मीर घाटी में ‘आजादी चाचा’ के नाम से मशहूर अहमद वागे उर्फ सरजन बरकती से भी है।

बरकती पर आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद युवाओं को आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के लिए उकसाने के आरोप हैं। इसके चलते वे जेल में हैं। उमर इससे पहले तिहाड़ जेल से चुनाव लड़े इंजीनियर रशीद से बारामुला सीट पर लोकसभा चुनाव हार चुके हैं।

इन्हीं वजहों से उमर के लिए यह मुकाबला कड़ा माना जा रहा है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बिलाल फुरकानी भी मानते हैं कि भले ही यह सीट अब्दुल्ला परिवार का गढ़ है, लेकिन यहां भी कड़ी टक्कर मिलेगी। यही वजह है कि उमर बडगाम सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं।

इस सीट पर भी NC का दबदबा रहा है। पिछले 10 विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक बार NC यहां से हारी है। ऐसे में बडगाम भी उमर के लिए सेफ सीट मानी जा रही है। लेकिन कश्मीर के सीनियर जर्नलिस्ट बिलाल फुरकानी कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि गांदरबल से ज्यादा करीबी टक्कर बडगाम सीट पर होगी।

PDP कैंडिडेट सैयद मुंतजिर मेहदी से उनकी कड़ी टक्कर होगी। मुंतजिर शिया समुदाय से आते हैं। बडगाम सीट पर शिया मुस्लिम वोटर्स सबसे ज्यादा हैं। उनके पिता आगा सैयद हुसैन मेहदी नामी शिया नेता थे। वे बड़े हुर्रियत नेता भी रहे हैं। ऐसे में यहां काफी नजदीकी चुनाव हो सकता है।‘

सीट पर 30 से 33 हजार वोटर शिया हैं जो जिले की आबादी का करीब 35% है। 2014 में इस सीट से मेहदी के चचेरे भाई आगा सैयद रूहुल्लाह ने NC से चुनाव जीता था। रूहुल्लाह श्रीनगर से सांसद चुने गए हैं।

भाजपा के जम्मू-कश्मीर प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना नौशेरा सीट से चुनाव मैदान में हैं। 2014 में वे यहां से विधायक बने थे। 2014 चुनाव में उन्हें कड़ी टक्कर देने वाले PDP कैंडिडेट सुरेंद्र चौधरी इस बार NC से चुनाव लड़ रहे हैं। वे PDP से अलग होकर पहले BJP में शामिल हुए थे। फिर NC में आए और विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

एक्सपर्ट मानते हैं कि सुरेंद्र चौधरी का अपना वोट बैंक है। 2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को 5,342, जबकि NC को 1,099 वोट मिले थे। इस बार NC और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव मैदान में है। ऐसे में यहां लड़ाई कांटे की होगी।

एक खास बात यह है कि रविंदर रैना सबसे कम संपत्ति वाले उम्मीदवारों में दूसरे नंबर पर हैं। रैना ने हलफनामे में अपनी संपत्ति कुल एक हजार रुपए घोषित की है।

जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस (JKPC) प्रमुख सज्जाद गनी लोन कुपवाड़ा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। NC ने नासिर असलम वानी और PDP ने मीर मोहम्मद फयाज उम्मीदवार बनाया है। 2014 में इस सीट JKPC के उम्मीदवार बशीर अहमद डार ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कुल 24,754 वोट हासिल किए थे।

नॉर्थ कश्मीर की लंगेट सीट नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ रही है। लेकिन 2008 में अवामी इत्तिहाद पार्टी के चेयरमैन शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर राशिद ने अपना पहला विधानसभा चुनाव जीतकर स्थिति काफी बदल दी है।

2014 में भी उन्होंने यहां से चुनाव जीता। इसी साल जेल में रहते हुए उन्होंने उमर अब्दुल्ला को बारामूला लोकसभा सीट से हराया है। लंगेट सीट से इस बार उनके भाई खुर्शीद अहमद शेख चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला JKPC नेता और कुपवाड़ा के डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के अध्यक्ष इरफान सुल्तान पंडितपुरी से है।

NC और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार इरशाद गनी भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इनके अलावा प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. कलीम उल्लाह भी मैदान में हैं।

सेब के बागानों के लिए मशहूर रहा सोपोर, 90 के दशक में आतंकवाद के कब्जे में रहा है। यह सीट अलगाववादी नेताओं का गढ़ मानी जाती रही है। अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी इस सीट से तीन बार चुने जा चुके हैं। यही वजह है कि सीट पर मतदान भी कम होता रहा है।

2008 में यहां केवल 19% ही वोटिंग हुई थी। 2014 में यह आकड़ा बढ़कर 30% और इस बार 45.32% रहा है। हालांकि, सीट चर्चा में इसलिए है क्योंकि यहां से संसद हमले का दोषी अफजल गुरु का बड़ा भाई एजाज अहमद गुरु निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है।

इस सीट पर NC और कांग्रेस ने अपने अलग-अलग कैंडिडेट उतारे हैं। NC ने इरशाद रसूल कर तो कांग्रेस ने 2014 में यहां से विधायक रहे अब्दुल राशिद डार को दोबारा टिकट दिया है। वहीं, PDP से इरफान अली लोन मैदान में हैं।

2014 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई। 28 सीटों के साथ PDP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं, भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरी सबसे पार्टी बनी। NC को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। भाजपा-PDP की सरकार बनने और तीन साल के अंदर टूटने की कहानी पढ़ें…

23 दिसंबर, 2014 को नतीजे सामने आने के साथ ही सभी पार्टियों ने सरकार बनाने की कोशिश शुरू कर दी। भाजपा ने दावा किया था कि उसके पास निर्दलीय सहित छह विधायकों का समर्थन है। भाजपा के उस समय के जम्मू-कश्मीर प्रभारी राम माधव बोले कि उन्होंने सभी पक्षों से बातचीत की है।

कभी NC के साथ रहे और अब भाजपा के नेता देवेंद्र सिंह राणा ने ANI को दिए एक इंटरव्यू में फिर से अपना दावा दोहराया कि उमर अब्दुल्ला भी उस समय भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाने के लिए तैयार थे। हालांकि, उमर ने इससे इनकार करते रहे हैं।

वरिष्ठ भाजपा नेता देवेंद्र सिंह राणा ने करीब 2 हफ्ते पहले सितंबर में ANI को दिए एक इंटरव्यू दिया है।
वरिष्ठ भाजपा नेता देवेंद्र सिंह राणा ने करीब 2 हफ्ते पहले सितंबर में ANI को दिए एक इंटरव्यू दिया है।

 करीब दो साल पहले एक रैली में उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि मैं सरकार गठन को लेकर बिना शर्त बाहरी समर्थन देने के लिए मुफ्ती साहब के पास गया था। सरकार बनने के आसार न बनते देख राज्यपाल एनएन वोहरा ने प्रदेश में राज्यपाल शासन (उस समय जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुसार) लागू कर दिया।

करीब दो महीने बाद 24 फरवरी, 2015 को भाजपा के तब के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों दलों के साथ आकर सरकार बनाने की घोषणा की। दोनों पार्टियां कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत साथ आईं थीं। हालांकि, दोनों में से किसी ने भी अनुच्छेद-370, अफस्पा आदि पर समझौते की शर्तों का खुलासा नहीं किया।

1 मार्च को जम्मू के जोरावर सिंह स्टेडियम में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा के निर्मल कुमार सिंह उप-मुख्यमंत्री बने। दोनों दलों के 12 कैबिनेट मंत्रियों ने भी शपथ ली। यह पहली बार था कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में सरकार का हिस्सा बनने जा रही थी। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।

24 फरवरी, 2015 को गठबंधन की घोषणा से पहले PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती और तब के भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने करीब 45 मिनट की बैठक की थी।
24 फरवरी, 2015 को गठबंधन की घोषणा से पहले PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती और तब के भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने करीब 45 मिनट की बैठक की थी।

 सरकार बने अभी साल भर भी पूरा नहीं हुआ था कि 7 जनवरी, 2016 को मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया। इसके बाद PDP ने विचारधारा में फर्क का हवाला देकर गठबंधन तोड़ लिया, लेकिन BJP में कोशिशें जारी रखीं। आखिरकार 4 अप्रैल, 2016 को BJP और PDP ने फिर से सरकार बनाई। इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर महबूबा मुफ्ती थीं।

 ये सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली। जून, 2018 में गठबंधन टूट गया और सरकार गिर गई। इसके बाद राज्य में 6 महीने तक राज्यपाल शासन रहा। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राष्ट्रपति शासन के बीच ही 2019 के लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें BJP भारी बहुमत के साथ केंद्र में लौटी।

इसके बाद 5 अगस्त, 2019 को BJP सरकार ने आर्टिकल-370 खत्म करके राज्य को दो केंद्र-शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया। इसके बाद करीब 6 साल तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा और अब जाकर विधानसभा चुनाव हुए हैं।

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