कोरबा-कटघोरा। कलचुरी राजवंश इतिहास एवं पुरातत्व शोध समिति कोरबा छतीसगढ़, ग्राम तुमान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करने जा रहा है। यहां भारतवर्ष के अन्य राज्यों से कल्चुरी जायसवाल कलार समाज के लोग एकत्रित होकर छत्तीसगढ़ में कल्चुरी शासन काल की धरोहर को लेकर बौद्धिक परिचर्चा करेंगे। देश के प्रख्यात विश्वविद्यालयों से आये पुरातत्व के प्रोफेसर कल्चुरी सम्राज्य व उनकी धरोहर को संरक्षित रखने से लेकर आज की युवा पीढ़ी को कल्चुरी राजवंश के विषय पर विस्तृत जानकारी देंगे।
22 व 23 मार्च को ग्राम तुमान में होने वाली कल्चुरी जायसवाल समाज की राष्ट्रीय संगोष्ठी को लेकर कटघोरा के अग्रसेन भवन में प्रेसवार्ता रखी गई। कल्चुरी समाज के संयोजक सह अध्यक्ष कौन्तेय जायसवाल ने बताया कि संगोष्ठी के मुख्य अतिथि स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल होंगे।इतिहास के पन्नों में गुम होती कल्चुरी वंश की राजधानी तुमान
छत्तीसगढ़ के एक हजार साल से भी अधिक पुराने इतिहास पर नजर डालें तो ऐतिहासिक ग्राम तुमान (तुममन/तुम्हाण) कोरबा जिले में स्थित है जो 10वीं व 11वीं शताब्दी में कल्चुरी वंश के शासकों की प्रारम्भिक राजधानी रही। इसका प्राचीन नाम तुममन था। जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूर कटघोरा-पेंड्रारोड राष्ट्रीय राजमार्ग पर तुमान स्थित है। वर्ष 1015 से 1045 ईसवी शताब्दी में राज्य के विभिन्न जिलों में राजा पृथ्वीदेव ने आधिपत्य कायम किया था। उन्हीं के शासन काल में तुमान को छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में फैले कल्चुरी साम्राज्य की राजधानी के तौर पर विकसित करते हुए विभिन्न निर्माण कार्य कराए गए। चारों ओर से पहाड़ियों व घने जंगलों से घिरे तुमान में मंदिरों, मूर्तियों व तारण ताल का निर्माण कराया गया। राजा पृथ्वीदेव ने उत्कल नरेश को हराकर उनके साम्राज्य पर कब्जा किया था। पृथ्वीदेव पेंड्रा के शासक को हराकर तुमान पहुंचे थे। इसके बाद तुमान की ऐतिहासिक विरासत का विस्तार किया गया। पृथ्वीदेव जब पेंड्रा फतह कर तुमान की ओर आए तब इन गढ़ों में दामा व दुरहा भाईयों का राज था, जिन्हें हराकर उन्होंने गढ़ पर कब्जा किया।
राजा पृथ्वीदेव के शासनकाल में तुमान समेत कोरबा जिले के अनेक क्षेत्रों में मंदिरों व मूर्तियों का निर्माण कराया गया था। केवल तुमान में ही अलग-अलग हिंदू देवी-देवताओं के अनेक मंदिर बनवाए गए थे। इनमें से ज्यादातर मंदिर व उनमें ढूंढ़ी गई पौराणिक मूर्तियां भगवान ब्रम्हा, विष्णु व शंकर की हैं। वर्तमान स्थिति में 21 मंदिरों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। इनके अलावा शेष कलाकृतियां अब खुद इतिहास की गर्त में खो चुके हैं।
राजा पृथ्वीराज के शासनकाल में राजधानी तुमान के अधीन विभिन्न गढ़ों से लगान की वसूली की जाती थी। इसके लिए नियुक्त किए गए जमींदार जिले के तुमान, लाफा, पोड़ी, कोरबा, पाली, रतनपुर व चांपा गढ़ से लगान वसूली किया करते थे। इस काल में राजाओं को धार्मिक अनुष्ठान के लिए मंदिरों व निस्तारी की जरूरत के मद्देनजर जलाशय निर्माण कराया गया। खुदाई के दौरान गांव में 21 मंदिरों व 126 में मात्र 10 जलाशयों के अवशेष बचे हैं। तुमान के ऐतिहासिक मंदिरों की देखरेख पुरातत्व विभाग ने अपने हाथ में ले ली है, लेकिन जिस तरीके से संरक्षण होना चाहिए, वैसा नहीं हो रहा।