चेन्नई .मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को ट्रिपल तलाक मामले से जुड़ी सिविल रिवीजन पिटीशन खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने कहा- शरियत काउंसिल कोई अदालत नहीं है। यह एक प्राइवेट संस्था है।
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा- यह काउंसिल पारिवारिक और आर्थिक दिक्कतों को दूर करने में मदद कर सकती है, लेकिन तलाक सर्टिफिकेट जारी करने और पेनाल्टी लगाने का हक काउंसिल को नहीं है।
मामला मुस्लिम कपल के तलाक से जुड़ा है। इन्होंने 2010 में शादी की थी, कुछ सालों बाद पति ने पत्नी को ट्रिपल तलाक दे दिया था। 2017 में तमिलनाडु की तौहीद जमात (शरियत काउंसिल) ने इस कपल को तलाक का सर्टिफिकेट जारी कर दिया था।
जस्टिस स्वामीनाथन ने तलाक सर्टिफिकेट की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक चौंकाने वाला दस्तावेज है। काउंसिल ने पति की तीन तलाक की याचिका स्वीकार कर ली थी।
काउंसिल ने मध्यस्थता की कोशिश करने के साथ-साथ पत्नी पर सहयोग न करने का आरोप लगाया था। जब तक अधिकार क्षेत्र वाले किसी कोर्ट से तलाक को मान्य नहीं कहा जाता, तब तक यह शादी कानूनन सही मानी जाएगी।
- सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा- पति को शरियत काउंसिल नहीं, बल्कि कोर्ट जाकर तलाक की मांग करनी होगी और अधिकार क्षेत्र वाली अदालत का डिक्लेरेशन लेना होगा।
- इस मुद्दे को पति के एकतरफा फैसले पर नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि ऐसा करने से पति अपने ही केस का खुद ही जज बन जाएगा। पति ने दो बार शादी की है। पति की दूसरी शादी पीड़ित पत्नी के लिए भावनात्मक दर्द था, जो क्रूरता के बराबर है।
- यदि कोई हिंदू, ईसाई, पारसी या यहूदी पति पहली शादी के अस्तित्व में रहते हुए दूसरी शादी करता है तो यह बाइगैमी के अपराध के अलावा क्रूरता भी माना जाएगा।
- यह स्पष्ट रूप से घरेलू हिंसा का मामला माना जाएगा, जिसके तहत पत्नी को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत मुआवजा पाने का अधिकार है। यह प्रस्ताव मुसलमानों के मामले में भी लागू होगा।
- 2017 में शरियत काउंसिल से तलाक का सर्टिफिकेट मिलने के बाद पति ने दूसरी शादी कर ली। पीड़ित पत्नी ने तिरुनेलवेली ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस तलाक सर्टिफिकेट के खिलाफ याचिका लगाई।
- यह याचिका घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत लगाई गई। महिला में याचिका के जरिए कहा था कि तीन तलाक उसके मामले में लागू नहीं होता है। मैरिज अभी भी कानून के रूप से मान्य होनी चाहिए।
- 2021 में, मजिस्ट्रेट ने पीड़ित पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया। मजिस्ट्रेट ने कहा- पति को घरेलू हिंसा के लिए 5 लाख रुपए का मुआवजा और अपने नाबालिग बच्चे के देखभाल के लिए 25,000 रुपए हर महीने देने होंगे।
- मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने सेशन कोर्ट में याचिका लगाई थी, जो खारिज हो गई थी। इसके बाद पति ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया था। पति की याचिका हाईकोर्ट से भी खारिज हो गई है।