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नई दिल्ली। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा लसीका तंत्र (Lymphatic System) हमारी इम्यूनिटी को मजबूत रखता है, लेकिन इसी तंत्र की कोशिकाओं में होने वाला कैंसर लिम्फोमा (Lymphoma) चिंता का बड़ा कारण बनता जा रहा है। यह बीमारी लिम्फोसाइट्स नामक सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करती है, जो शरीर को संक्रमण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब ये कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं, तो लिम्फ नोड्स, तिल्ली और अस्थि मज्जा में ट्यूमर बनने लगते हैं।
लिम्फोमा के दो मुख्य प्रकार
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, लिम्फोमा मुख्य तौर पर दो प्रकारों में पाया जाता है—
1. हॉजकिन लिम्फोमा (Hodgkin Lymphoma)
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लिम्फोसाइट्स के एक विशेष प्रकार को प्रभावित करता है।
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युवाओं में अधिक देखा जाता है।
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सही समय पर उपचार मिलने पर रिकवरी की संभावना बहुत अधिक रहती है।
2. गैर-हॉजकिन लिम्फोमा (Non-Hodgkin Lymphoma)
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लिम्फोमा का अधिक सामान्य और विविध प्रकार।
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कई उपप्रकारों में पाया जाता है, जिनमें बीमारी का व्यवहार अलग-अलग होता है।
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कुछ उपप्रकार धीमी गति से बढ़ते हैं, वहीं कुछ अत्यधिक आक्रामक भी हो सकते हैं।
लिम्फोमा के प्रमुख लक्षण
विशेषज्ञों के अनुसार, लिम्फोमा के शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज न करें—
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गर्दन, बगल या जांघ में सूजे हुए लिम्फ नोड्स
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लगातार बुखार
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बिना कारण वजन घटना
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रात में अत्यधिक पसीना आना
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लगातार थकान
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भूख कम लगना
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बार-बार संक्रमण
इनमें से कोई भी लक्षण लगातार दिखे तो तुरंत चिकित्सकीय जांच कराना आवश्यक है।
इलाज: सही समय पर थेरपी से संभव है रिकवरी
लिम्फोमा के उपचार में कई आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है—
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कीमोथेरेपी
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रेडिएशन थेरेपी
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इम्यूनोथेरेपी (प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करके कैंसर कोशिकाओं से लड़ना)
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स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (कुछ गंभीर मामलों में)
चिकित्सकों का कहना है कि समय पर निदान और सही उपचार योजना से लिम्फोमा पूरी तरह ठीक होने की संभावना काफी अधिक होती है।
विशेषज्ञों की सलाह: जागरूकता और स्वस्थ जीवनशैली बेहद जरूरी
लिम्फोमा को लेकर जागरूकता बढ़ाना और स्वस्थ आदतें अपनाना आवश्यक है।
नियमित जांच, संतुलित आहार, पर्याप्त नींद, तनाव प्रबंधन और व्यायाम प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं।

