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केंद्र सरकार द्वारा चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड) को लागू किए जाने के बाद पत्रकार संगठनों में नाराज़गी बढ़ गई है। पत्रकार समुदाय का कहना है कि नए लेबर कोड न सिर्फ़ कर्मचारियों के अधिकारों को सीमित करते हैं, बल्कि प्रेस की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सीधा हमला हैं। पुराने क़ानूनों के ख़त्म होने से पत्रकारों की नौकरी सुरक्षा, वेतन संरचना और सेवा शर्तों पर गंभीर असर पड़ सकता है।
यह भी आरोप लगाया गया है कि जिन क़ानूनों के दम पर पत्रकारों को मालिकों, विज्ञापनदाताओं और सरकारों के दबाव से एक हद तक सुरक्षा मिली हुई थी, वे अब इतिहास बन जाएँगे। ऐसे समय में जब इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया के पत्रकार भी इन क़ानूनों के दायरे में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं, तब इसका समाप्त होना पत्रकारों के हितों के विपरीत माना जा रहा है।
संगठन का बयान
दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (DUJ) ने केंद्र सरकार के चार लेबर कोड लागू करने की कड़ी निंदा की है। DUJ का कहना है कि ये कोड पत्रकारों द्वारा लंबे संघर्ष के बाद हासिल ‘वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट, 1955’ और ‘वर्किंग जर्नलिस्ट्स वेजेज एक्ट, 1958’ को पूरी तरह समाप्त कर देते हैं, जबकि ये दोनों क़ानून प्रेस की आज़ादी के मज़बूत स्तंभ थे।
DUJ ने सरकार से लेबर कोड को वापस लेने की मांग की है और कहा है कि वे 26 नवंबर को केंद्रीय मजदूर यूनियनों के विरोध कार्यक्रमों में एकजुटता के साथ शामिल होंगे। DUJ ने देश के पत्रकारों से भी इन संयुक्त संघर्षों में शामिल होने की अपील की है, ताकि लंबी लड़ाई के बाद मिले अधिकारों की रक्षा की जा सके।

