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कोरबा/छत्तीसगढ़ शासकीय कार्यों आदेशों का लेखाजोखा की जानकारी आम नागरिक को जानने का अधिकार सरकार द्वारा कानून बनाकर दिया है जिसे “सूचना का अधिकार 2005” कहा जाता है!
नगर निगम कोरबा में सूचना के अधिकार के तहत् जितेन्द्र कुमार साहू ने वित्तीय वर्ष कैश बुक का लेखाजोखा प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया जिस पर जन सूचना अधिकारी ने 3790 पृष्ठ बड़े साईज का दस्तावेज से अवगत कराया गया और निर्धारित शुल्क पटाने के बाद उपलब्ध कराने की जानकारी दी गई लेकिन आवेदक को अचानक निजी आर्थिक संकट आ गया जिससे समय पर वह निर्धारित शुल्क नहीं पटा पाया जब आवेदक के पास शुल्क की व्यवस्था हो गई तब दस्तावेज लेने और शुल्क पटाने अधिकारी से संपर्क किया गया लेकिन समय बित जाने का हवाला देकर दस्तावेज देने से मना कर दिया गया!
आवेदक नगर निगम के जन सूचना अधिकारी के पास दस्तावेज लेने के लिए दोबारा आवेदन लगाया तब जन सूचना अधिकारी पवन वर्मा ने गोपनीय दस्तावेज होने का हवाला देकर देने से मना कर दिया !
जन सूचना अधिकारी के कार्यशैली को लेकर सवाल उठाते हुए आवेदक ने पूछा है कि नगर निगम कोरबा का वित्तीय कैश बुक किस आधार और नियम में गोपनीय दस्तावेज है? एक बार उसी दस्तावेज को देने के लिए शुल्क पटाने को बोला जाता है और दूसरी बार गोपनीय दस्तावेज है बोला जाता है जिससे बडे़ भ्रष्टाचार का बदबू आ रही है? नगर निगम में जितने भी पैसे आते हैं वह जनता के टैक्स के पैसे हैं और हर एक जनता को उस पैसे का जानकारी होना और देना यह नगर निगम का दायित्व बनता है लेकिन अधिकारी अपनी मनमानी पर उतर आये हैं और नियमों का ऐसी तैसी करने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं आम नागरिक चिल्लाता रहे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है इन्हें ये सारे हथकंडे अधिकारी अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए कर रहे हैं?