दिल्ली ,केंद्र सरकार डिजिटल फॉरेंसिक सर्विस प्रोवाइडर्स तलाश रही है। ऐसे विशेषज्ञों को ढूंढा जा रहा है जो पासवर्ड बाइपास कर मोबाइल का डेटा पाने में सक्षम हों। साथ ही वॉट्सऐप-टेलीग्राम जैसी मैसेज सर्विस के एन्क्रिप्टेड मैसेज रीड कर सकें।
ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि अल्ट्रा मॉर्डन मोबाइल हैंडसैट, लैपटॉप और क्लाउड में छिपा डेटा क्रैक करना और मैसेज के एन्क्रिप्शन समझना जांच एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।
इन सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए कंपटिशन कमीशन ऑफ इंडिया के जरिए टेंडर निकाला गया है। मांग की गई है कि डिजिटल फॉरेंसिक सर्विस प्रोवाइडर के पास एक्सपर्ट्स की बड़ी टीम होनी चाहिए। जिसमें कम से कम 15 प्रोफेशनल्स हों।
विदेशी कंपनियों की बात करें तो इजराइल की सेलब्राइट मोबाइल पिन, पासवर्ड बाइपास कर सकती है। रूस की कंपनी ऑक्सीजेन का सॉफ्टवेयर डिटेक्टिव भी एन्क्रिप्शन तोड़ सकता है।
नए आपराधिक कानून के बाद डिजिटल सबूत अहम हैं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में डिजिटल प्रमाण में- मैसेज, कॉल रिकाॅर्डिंग, ई-मेल, लैपटाॅप, कैमरा व अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हैं।
नए कानूनों पर विचार कर रही संसदीय समिति के विपक्षी सदस्यों ने मोबाइल और लैपटॉप जब्त करने पर एतराज किया था। उनका कहना था कि इनमें ऐसी निजी सूचनाएं होती हैं जिनका केस से सरोकार न होता। ऐसे में यह निजता का हनन है।
एंड-टु-एंड एन्क्रिप्शन एक कम्युनिकेशन सिस्टम है, जिसमें मैसेज भेजने वाले और मैसेज रिसीव करने वाले के अलावा कोई अन्य शामिल नहीं होता है। यहां तक कि कंपनी भी एंड-टु-एंड एन्क्रिप्शन में यूजर्स के मैसेज नहीं देख सकती है।
अगर वॉट्सऐप की बात करें तो वो एन्क्रिप्शन के लिए यूजर के मैसेज/डेटा को कॉम्प्लेक्स कंप्यूटर कोड में बदल देता है। इस मैसेज को वहीं डिक्रिप्ट कर सकता है जिसके पास सही एक्सेस-की होती है। कंपनी के पास भी यह एक्सेस की नहीं होती है।