Friday, July 11, 2025

“भगवान शिव के इस स्तोत्र से दूर करें आर्थिक तंगी, जानिए कैसे”

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वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार 10 अप्रैल को प्रदोष व्रत है। यह पर्व प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही सभी प्रकार के संकटों से निजात पाने के लिए साधक त्रयोदशी के दिन व्रत रखते हैं।

शिव पुराण में वर्णित है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुखों में वृद्धि होती है। ज्योतिष जीवन में व्याप्त दुखों से निजात पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो गुरु प्रदोष व्रत के दिन भक्ति भाव से महादेव की पूजा करें। पूजा के समय गन्ने के रस से महादेव का अभिषके करें। वहीं, पूजा के समय दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र का पाठ करें।

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय । 

कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय । 

गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय । 

ज्योतिर्मयाय गुणनामसुकृत्यकाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

चर्मांबराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय । 

मंजीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय । 

आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

गौरीविलासभवनाय महेश्वराय पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय । 

शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय । 

नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

रामप्रियाय राघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय । 

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय । 

मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ 

वसिष्ठेनकृतं स्तोत्रं सर्व दारिद्‌र्यनाशनम् । 

सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ॥ 

शिवजी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा,स्वामी जय शिव ओंकारा। 

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,अर्द्धांगी धारा॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

एकानन चतुराननपञ्चानन राजे। 

हंसासन गरूड़ासनवृषवाहन साजे॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

दो भुज चार चतुर्भुजदसभुज अति सोहे। 

त्रिगुण रूप निरखतेत्रिभुवन जन मोहे॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

अक्षमाला वनमालामुण्डमाला धारी। 

त्रिपुरारी कंसारीकर माला धारी॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

श्वेताम्बर पीताम्बरबाघम्बर अंगे। 

सनकादिक गरुणादिकभूतादिक संगे॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

कर के मध्य कमण्डलुचक्र त्रिशूलधारी। 

सुखकारी दुखहारीजगपालन कारी॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिवजानत अविवेका। 

प्रणवाक्षर मध्येये तीनों एका॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

लक्ष्मी व सावित्रीपार्वती संगा। 

पार्वती अर्द्धांगी,शिवलहरी गंगा॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

पर्वत सोहैं पार्वती,शंकर कैलासा। 

भांग धतूर का भोजन,भस्मी में वासा॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

जटा में गंगा बहत है,गल मुण्डन माला। 

शेष नाग लिपटावत,ओढ़त मृगछाला॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

काशी में विराजे विश्वनाथ,नन्दी ब्रह्मचारी। 

नित उठ दर्शन पावत,महिमा अति भारी॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा… 

त्रिगुणस्वामी जी की आरतीजो कोइ नर गावे। 

कहत शिवानन्द स्वामी,मनवान्छित फल पावे॥ 

ॐ जय शिव ओंकारा…

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