पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में उच्च अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला जारी

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पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में उच्च अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला जारी

पंडित सुंदरलाल शर्मा विश्वविद्यालय की स्थापना तत्कालीन भाजपा समर्थित छत्तीसगढ़ शासन के मुख्यमंत्री रमन सिंह के शासनकाल में 2005 में की गई थी। इसका उद्घाटन करते हुए पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी जी ने कहा था कि यह विश्वविद्यालय पूरे छत्तीसगढ़ के सुदूर पिछड़े और अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों के लिए वरदान साबित होगी। जो बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं, उन्हें अवसर नहीं मिलता है, बड़ी-बड़ी ऊंची ऊंची फीस और शुल्क के कारण उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। ऐसे विद्यार्थियों को यह विश्वविद्यालय भरपूर अवसर देगा। उच्च शिक्षा के साथ-साथ रोजगार, स्वरोजगार और अनेक कौशल के संसाधन उपलब्ध कराएगा यह विश्वविद्यालय।

यह कितने विडंबना की बात है ,कि जब से पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है, तब से आज तक यहां भ्रष्टाचार ,घोटाला और विवादों का बोलबाला चल रहा है। स्थापना कल से अब तक जितने भी उच्च अधिकारी रहे हैं उन सब ने विश्वविद्यालय की कार्य प्रणाली और उसके उद्देश्यों पर ध्यान न देकर केवल अपने ही स्वार्थ में लग रहे। इसका ही परिणाम है कि आज भी विश्वविद्यालय अपने निहित उद्देश्यों के आसपास भी नहीं दिखती है। अब तक न जाने कितने घोटाले हो चुके हैं। कितने भ्रष्टाचारों के परतें भी खुल चुकी हैं। फिर भी कुलाधिपति व उच्च अधिकारी इन विसंगतियों की ओर क्यों नहीं ध्यान देते समझ से परे है। ताजुब होता है की विश्वविद्यालय में आज भी लगभग ढाई सौ कर्मचारियों में से केवल 33 कर्मचारी नियमित हैं ।बाकी सभी अनियमित कर्मचारी हैं जो अथक प्रयासों के बाद भी नियमित नहीं हो सके हैं। और उनकी सुनने वाला कोई भी नहीं है। 18 साल का अनुभव एवं पात्रता होने के बावजूद भी उन्हें जानबूझकर अनियमित रखा गया है। यह भी समझ से परे है ।

विश्वविद्यालय की स्थापना कल के प्रथम कुल सचिव ने इसके लिए कर्मचारियों के बीच दूरस्थ शिक्षा में डिप्लोमा की परीक्षाएं आयोजित करवाई थी। और एक लेटर जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि जो कर्मचारी दूरस्थ शिक्षा में डिप्लोमा की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेंगे उन सभी कर्मचारियों को शीघ्र से शीघ्र नियमित कर दिया जाएगा। लेकिन उक्त परीक्षा पास किए हुए कर्मचारियों को वर्षों बीत गए फिर भी उन्हें नियमित नहीं किया गया है। वहीं सहायक समन्वयक के पद पर वर्षों से कार्य करने वाले सहायक समन्वयकों को डिमोट कर उन्हें समन्वयक सहायक बनाकर उनके सारे अधिकारों को छीन लिया गया। उनकी जगह स्थानीय स्तर पर संचालित कॉलेज के प्रिंसिपलों को यह अधिकार दे दिए गए। आज भी समन्वयक सहायक व कर्मचारी नाम मात्र के वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। अगर कोई कर्मचारी वेतन बढ़ाने की बात करता है तो उसे नौकरी से निकाल दिए जाने का भय दिखाया जाता है। पिछले 18 वर्षों में विश्वविद्यालय में तीन कुलपति आए और सभी ने अपने चहेतों को विश्वविद्यालय में भर्ती कर नियमित कर दिया। अभी हाल ही में कई अनियमित कर्मचारियों को 60 साल का होने पर ही रिटायरमेंट का लेटर थमा दिया गया। जबकि नेशनल पेंशन स्कीम में यह उल्लेखित है कि कर्मचारी 62 वर्ष में ही रिटायर होंगे।

इस विश्वविद्यालय क्या प्रथम उद्देश्य था कि दूरस्थ एरिया के शिक्षा से वंचित छात्रों को अधिक से अधिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त कर हो सके वह उद्देश्य अब खत्म होता नजर आ रहा है क्योंकि स्थापना काल में दूरस्थ एरिया में लगभग 300 से अधिक अध्ययन केंद्र स्थापित किए गए थे। वह आज मुश्किल से सौ से अधिक अध्ययन केंद्र बचे रह गए हैं। वही विश्वविद्यालय द्वारा संचालित हो रहे अनेक पाठ्यक्रमों को भी न जाने किस वजह से बंद कर दिया गया है। दूरस्थ एवं अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के छात्रों के लिए उपयोगी डीसीए ,पीजीटीसीए सहित अनेक पाठ्यक्रम बंद कर दिए गए हैं। विश्वविद्यालय का यह कदम छात्र हित में कतई नहीं कहा जा सकता,और ना ही अपने उद्देश्यों को पूर्ति करता नजर आ रहा है।

यहां सबसे दुखद बात यह है कि कर्मचारियों को बार-बार मांगे जाने के बाद भी पीएफ का पैसा नहीं मिल पा रहा है। पिछले करोनाकाल में कई कर्मचारी कोरोना के चपेट में आकर उनका निधन हो गया ।लेकिन फिर भी उनके परिजनों को आज तक पीएफ की राशि नहीं दी गई। इस बारे में प्रबंधन से बात करने में केवल तरह-तरह के बहाने एवं टाल मटोल वाली बातें की जाती हैं। लगता है प्रबंधन की कर्मचारियों के प्रति संवेदनाएं ही खत्म हो चुकी है। अभी हाल ही में पंडित सुंदरलाल मुक्त विश्वविद्यालय में विवादित पदों की भर्ती की प्रक्रिया एक बार फिर से शुरू कर दी गई है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि 9 सितंबर को कार्य परिषद की बैठक के पहले ही अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए कॉल किया जाएगा, और दो पदों के बंद लिफाफे सहित सभी चयनित उम्मीदवारों की जल्दी नियुक्ति की जाएगी।

विश्वविद्यालय प्रबंधन चुनाव आचार संहिता लगने के पूर्व आनन फानन में नियुक्ति करने जा रहा है। गौरतलब है कि चयनित किए जाने वाले उम्मीदवारों के नाम पहले ही पद के अनुसार वायरल हो गए थे।, इस संदर्भ में प्रधानमंत्री कार्यालय दिल्ली एवं छत्तीसगढ़ के राज्यपाल से शिकायत की गई थी। इसके बाद मामले की जांच की जा रही है। मामला सामने आने के के बाद उच्च शिक्षा विभाग से विश्वविद्यालय प्रबंधन को फटकार भी लगाई गई थी।

पंडित सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय में स्व वित्तीय योजना अंतर्गत कुल 08 पदों का सृजन हुआ है। जिसमें सहायक क्षेत्रीय निदेशक के 03 पद, सिस्टम एनालिस्ट का 01 पद, कम्प्यूटर प्रोग्रामर का 01 पद, छात्र कल्याण अधिकारी का 01 पद, सहायक छात्र कल्याण अधिकारी का 01 पद तथा जनसंपर्क अधिकारी का 01 पद सम्मिलित है। इन पदों में नियमित नियुक्ति हेतु विश्वविद्यालय के द्वारा पहले जनवरी, 2023 में विज्ञापन जारी किया गया। लेकिन एक अभ्यर्थी किरण दुबे के द्वारा उच्च न्यायालय, बिलासपुर में पिटीशन प्रस्तुत करने के कारण उसे निरस्त कर पुनः विज्ञापन फरवरी, 2023 में जारी किया गया। उक्त विज्ञापन में अनेक तरह से अनियमितता, भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद की शिकायतें राष्टपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग को प्रेषित किया गया है।

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