*बांद्रा में नए उच्च न्यायालय परिसर का भूमि पूजन, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने किया शिलान्यास*

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*मुंबई, 23 सितंबर:* बॉम्बे हाई कोर्ट के प्रस्तावित नए परिसर का भूमि पूजन समारोह आज बांद्रा पूर्व में आयोजित किया गया। इस ऐतिहासिक अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने शिलान्यास किया। कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायाधीश ए.एस. ओक, न्यायाधीश दीपांकर दत्ता, न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां, न्यायाधीश प्रसन्ना बी. वराले, बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय, उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

इस अवसर पर न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों के साथ-साथ वकील, अधिवक्ता और बार काउंसिल के अध्यक्ष भी उपस्थित थे। सॉलिसिटर जनरल श्री व्यास, अधिवक्ता श्री सराफ, मुख्य सचिव सुजाता सौनिक और अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा म्हैसकर ने भी समारोह की शोभा बढ़ाई।

भूमि पूजन के बाद मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में कहा, “न्याय की बदली हुई अवधारणा है ‘न्याय आपके द्वार’।” उन्होंने कहा कि नए भवन का निर्माण न्यायिक व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाएगा और आने वाले 100 वर्षों तक यह परिसर पक्षकारों, वकीलों और न्यायाधीशों के लिए योगदान देता रहेगा।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “बॉम्बे हाई कोर्ट का काम 14 अगस्त 1862 को अपोलो बंदर से शुरू हुआ था, और 17 साल बाद यह वर्तमान भवन में स्थानांतरित हुआ। 150 वर्षों से अधिक के इस गौरवशाली इतिहास में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने अनेक राष्ट्रीय नेता दिए हैं और यह न्यायिक प्रणाली में अपने प्रतिष्ठित योगदान के लिए जाना जाता है।”

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी इस अवसर पर कहा, “अदालत की भूमिका लोकतंत्र को मजबूत करना है। नए भवन की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी, क्योंकि न्यायिक कामकाज की प्रकृति और दायरा लगातार बढ़ रहा है।”

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि डिजिटल युग में नई चुनौतियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, अदालतों का डिजिटलीकरण और कागज रहित कामकाज अब समय की मांग है। नए भवन का निर्माण सभी के लिए अधिक सुविधाजनक होगा और इससे न्यायपालिका की आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।

यह समारोह न केवल बॉम्बे हाई कोर्ट के भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह भारत की न्यायिक प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ने वाला ऐतिहासिक क्षण भी है।

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