मथुरा में गोवर्धन पूजा पर भक्तों का सैलाब उमड़ा है। श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की 21 किलोमीटर की परिक्रमा कर रहे हैं। अब तक 3 लाख श्रद्धालु परिक्रमा कर चुके हैं। शाम तक 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है।
भारत के अलग-अलग राज्यों सहित विदेश से भी भक्त पहुंचे हैं। ढोल-नगाड़ों पर डांस रहे हैं। गिरिराज जी को 1008 तरह के व्यंजनों का भोग लगाया गया।
इस पर्व पर लोग घरों में भी गाय के गोबर से गिरिराज जी को बनाकर पूजा किया। इसके साथ ही नए अनाज से बने कई तरह के पकवान बनाकर उनको भोग लगाते हैं। जिसे अन्नकूट कहते हैं।
इस दौरान भक्त गिरिराज जी की ‘में तो गोवर्धन कु जाऊं मेरे पीर नाय माने मेरो मनवा’ गीत गाकर आराधना कर रहे हैं। सुबह सबसे पहले 5 बजे गिरिराज जी के मंदिरों में सबसे पहले भगवान गोवर्धन नाथ का दूध से अभिषेक किया गया। यहां के दानघाटी, मुकुट मुखारबिंद मंदिर, मानसी गंगा सहित हरदेव मंदिर पर भगवान का दूध से अभिषेक किया गया। इसके बाद भगवान की विशेष आरती उतारी गई।
गिरिराज जी को अलग-अलग तरह के पकवान बनाकर अर्पित करने की परंपरा है। ब्रजवासी उनको 56 तरह के व्यंजन बनाकर अर्पित करते हैं। इसके अलावा गोवर्धन में विदेशी भी उनको 56 भोग अर्पित करते हैं। विदेशी महिलाएं सिर पर टोकरी में 56 भोग रखकर गिरिराज जी को अर्पित करने के लिए ले जाती हैं। दोपहर में 56 भोग अर्पित किया जाएगा।
द्वापर में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था। 7 दिन 7 रात तक उठाने के बाद श्री कृष्ण ने इंद्र का मान भंग किया और ब्रजवासियों की रक्षा की। इससे प्रसन्न होकर ब्रजवासियों ने उनको अपने-अपने घर से बने व्यंजन ला कर अर्पित किए, जिसके बाद श्री कृष्ण को गिर्राज जी के स्वरूप में पूजा जाता है। तभी से दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है।