इतनी परेशानियों के बावजूद भी विशेष पिछड़ी जनजाति के कोरवा आदिवासियों ने लोकतंत्र के महापर्व में निभाई अपनी जिम्मेदारी
कोरबा: कोरबा जिले के खोखराआमा गांव में रहने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति के कोरवा आदिवासी लोकतंत्र के महापर्व में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. यहां के वोटरों में काफी उत्साह रहता है. इस गांव का मतदान प्रतिशत हर बार 85 प्रतिशत के पार ही रहता है. ये पहाड़ी कोरवा अपने गांव में विकास की आस में हर बार वोट तो डालते हैं लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि इस गांव का रास्ता ही भूल जाते हैं.
नाव के भरोसे यहां के ग्रामीण: इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि आखिर हमसे क्या गलती हो गई है? क्या मूल निवासी होना, बीहड़ वनांचल में बसना हमारी भूल है? यदि नहीं तो विकास आखिर शहर तक ही सीमित क्यों रहता है? वह गांव का रास्ता क्यों भूल जाता है? दरअसल, छत्तीसगढ़ में मंगलवार को तीसरे चरण का मतदान हुआ. इस दौरान ईटीवी भारत के टीम कोरबा लोकसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत सतरेंगा के आश्रित गांव खोखराआमा पहुंची. इस गांव में पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के परिवार रहते हैं. इन ग्रामीणों को मतदान करने सतरेंगा तक आना पड़ता है, लेकिन इस फासले के बीच में एक बड़ा डूबान का क्षेत्र है. बड़ी मात्रा में यह इलाका पानी से घिरा है, जिसने लगभग चार दशक के विकास का रास्ता रोक रखा है. बांगो बांध के निर्माण के बाद से ही यहां पानी भर गया था, जो हसदेव नदी से जुड़ा हुआ है. इसी नदी को पार करने के लिए ग्रामीण नाव का सहारा लेते हैं.
मतदान के दिन ग्रामीणों की नाव नदी के इस पार थी, जबकि दूसरी तरफ जो नाव गांव के मुहाने पर मौजूद था. उसमें पानी भर चुका था, कुछ लोग इसी नाव से पानी खाली कर रहे थे. इतने में ही गांव का युवा चैतराम नदी में ही कूद गया और तैरकर डुबान को पार किया, जिसके बाद वह नाव वापस लेकर गया और तब जाकर कोरवा आदिवासी नदी को पार कर सके और वोट डालने मतदान केंद्र पहुंचे. इतनी परेशानियों के बावजूद ये पहाड़ी कोरवा अपने मताधिकार का प्रयोग करना नहीं भूलते. हालांकि जनप्रतिनिधि इस गांव का रास्ता भूल जाते हैं.