आस्था, विश्वास, स्वच्छता का प्रतीक है छठ महापर्व

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आस्था, विश्वास, स्वच्छता का प्रतीक है छठ महापर्व

 

शहर के प्रमुख घाटों पर डूबते सूर्य को रविवार को दिया जाएगा अर्घ्य

30 हज़ार पूर्वांचली परिवार नदी, घाटों पर मनाते है पर्व , बीते कुछ वर्षों से भव्य होने लगा है आयोजन

बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाले प्रमुख छठ महापर्व का उल्लास पिछले 20 वर्षों से रायगढ़ में भी छाने लगा है। पहले छठ पर्व को सादगी से मनाया जाता था। कुछ ही परिवार के लोग इसमें शामिल होते थे, लेकिन बीते कुछ वर्षों से भव्य आयोजन होने लगा है। कयाघाट, खर्राघाट, बूढ़ीमाई मंदिर तालाब, सोनुमुड़ा तालाब, भगवनापुर, कोकड़ीतराई तालाब के निकट छठ घाट के किनारे अर्घ्य देने और पूजा करने के लिए 40 हजार से अधिक श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।

पंडित मदन मोहन मालवीय भोजपुरी समाज के वरिष्ठ सदस्य पवन प्रकाश ओझा बताते हैं कि चार दिवसीय पर्व के आखिरी दो दिन तालाब, नदी-तट पर हजारों लोग भक्तिभाव में डूब जाते हैं। आस्था, विश्वास की ऐसी लहर बहती है कि पूरी रात जागरण में पारंपरिक छठ लोक गीतों की सुर लहरियां गूंजती हैं। अस्त होते सूर्य और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान आतिशबाजी का नजारा देखने लायक होता है। शहर के विभिन्न छठ घाटों में महाभंडारे में ठेकुआ प्रसाद और भोजन ग्रहण करने के लिए 40 हजार से अधिक श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं। पहले छठ पर्व मनाने के लिए ज्यादातर लोग अपने मूल गांव में लौट जाते थे। जो लोग किसी कारणवश अपने गांव नहीं जा पाते थे, वे अपने घर के आसपास के तालाबों में ही अर्घ्य देते थे। समय बीतने के साथ सैकड़ों परिवार स्थायी रूप से यहीं बस गए। उन परिवारों के सदस्यों ने 50 साल पहले लेबर कॉलोनी के पास नदी घाट पर छोटे रूप में छठ पर्व मनाने की शुरुआत की। धीरे-धीरे समाज के लोग संगठित होते गए। अब, 20 साल में सबसे बड़ा आयोजन जूटमिल और खर्रा घाट पर होने लगा है। शहर के आसपास के गांवों में रहने वाले भी यहाँ पहुंचकर पर्व मनाते हैं। बाहर से आने वालों के ठहरने, भोजन की विशेष व्यवस्था की जाती है। पूरी रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

जूटमिल छठ पूजन समिति के मनीष सिंह ने बताया कि चार दिवसीय छठ महापर्व का शुभारंभ शुक्रवार को नहाय-खाय परंपरा निभाने के साथ शुरू हुआ। रायगढ़ में निवासरत उत्तर भारतीय समाज के परिवारों में सुबह स्नान करके छठ पर्व को पवित्रता से मनाने का संकल्प लिया। शाम को लौकी की सब्जी और रोटी का सेवन करने की रस्म निभाई।

शनिवार को दूसरे दिन खरना रस्म, शुद्धता का रखा गया।

छठ महापर्व स्वच्छता का सबसे बड़ा प्रतीक है। प्राचीन काल से पर्व के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया जा रहा है। पूजन करने और प्रसाद तैयार करने में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। सूर्य भगवान और छठी माता को भोग अर्पित किया जाता है। पर्व के दूसरे दिन लोहंडा एवं खरना की रस्म 18 नवंबर को निभाई गई। पूरे परिवार के सदस्य दिनभर व्रत रखकर रात्रि में खीर-रोटी खाने की परंपरा को निभाया। खीर रोटी का सेवन करके निर्जला व्रत रखने का संकल्प लिया।

सूर्यदेव और बहन छठी मइया की पूजा

कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर छठ पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करने का विधान है। छठ व्रत के अनुष्ठान अत्यंत कठिन है। निर्जला व्रत रखकर कड़कड़ाती ठंड के दौरान नदी के किनारे कमर तक पानी में डूबकर पूजा-अर्चना करना, पानी की एक बूंद ना पीना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, जमीन पर सोने जैसे नियमों का पालन करना पड़ता है।

छठ महापर्व का मुख्य आयोजन

19-20 नवंबर को इस साल छठ महापर्व का मुख्य आयोजन 19 नवंबर की शाम जूटमिल के केलो तट, एसईसीएल घाट, भगवानपुर तालाब, कोकड़ीतराई तालाब, बूढ़ी माई मंदिर तालाब, सोनूमुड़ा तालाब पर होगा। महिलाएं विधिवत पूजन करके डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगी। शाम से लेकर ब्रह्म मुहूर्त तक सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोक गीतों की प्रस्तुति होगी। 20 नवंबर को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के पश्चात उगते सूर्य को जल, विविध तरह के फल, सब्जियों से अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाएगी। छठ पर्व के प्रमुख व्यंजन ठेकुआ का प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात व्रती महिलाएं पारणा करेंगी। दिनभर परिचितों और रिश्तेदारों को प्रसाद वितरण करने का सिलसिला चलेगा। इसी के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन होगा।

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