*भोपाल: नगर पालिका संशोधन अध्यादेश जारी, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाना हुआ मुश्किल*

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भोपाल में नगर पालिका के संचालन से जुड़े नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए राज्य सरकार ने द्वितीय संशोधन अध्यादेश जारी किया है। इस अध्यादेश पर मंगलवार देर शाम राज्यपाल की स्वीकृति के बाद इसे लागू कर दिया गया। नए संशोधन के तहत नगर पालिका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उनके पद से हटाना अब पहले की तुलना में अधिक कठिन हो गया है।

संशोधन के प्रमुख बिंदु यह हैं कि अब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए पहले की दो-तिहाई बहुमत के बजाय तीन-चौथाई बहुमत की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही, अविश्वास प्रस्ताव लाने की समयसीमा भी बढ़ा दी गई है। पहले, यह प्रस्ताव दो वर्ष के कार्यकाल के भीतर लाया जा सकता था, लेकिन अब इसे तीन वर्ष के कार्यकाल के बाद ही लाया जा सकेगा।

यह संशोधन अध्यादेश राज्य सरकार द्वारा पहले ही कैबिनेट में पास कर दिया गया था और इसके बाद इसे राज्यपाल के अनुमोदन के लिए भेजा गया था। राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह अध्यादेश अब कानून का रूप ले चुका है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस संशोधन का उद्देश्य नगर पालिका के प्रशासन को स्थिरता प्रदान करना और राजनीतिक अस्थिरता को कम करना है। इससे नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को अपने कार्यकाल के दौरान अधिक सशक्त बनाया जा सकेगा और उन्हें विकास कार्यों को जारी रखने का अवसर मिलेगा।

हालांकि, इस संशोधन को लेकर राजनीतिक हलकों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। विपक्षी दलों ने इस संशोधन को सरकार की एकतरफा नीति करार देते हुए इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि इस संशोधन से स्थानीय प्रशासन में जवाबदेही कम हो जाएगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर हो सकती है।

दूसरी ओर, सरकार समर्थकों का कहना है कि यह संशोधन नगर पालिका के पदाधिकारियों को अनावश्यक दबावों से मुक्त रखेगा और उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान योजनाओं को सुचारू रूप से लागू करने में मदद करेगा।

संशोधित अध्यादेश के लागू होने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका स्थानीय प्रशासन पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या यह बदलाव राजनीतिक स्थिरता और प्रशासनिक दक्षता के लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है।

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