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कोरबा /छत्तीसगढ़ : कोरबा दादरखुर्द के जमीन बिक्री के नाम पर धोखाधड़ी से जुड़े एक मामले में माननीय न्यायालय के द्वारा आरोपी सुरेश चन्द्र तिवारी एवं सुधा तिवारी के विरुद्ध दिए गए फैसले के खिलाफ की गई अपील में अधिवक्ता कमलेश साहू एवं जूनियर अधिवक्ता जोगिंदर साहू के द्वारा न्यायाधीश और उनके कर्तव्य को लेकर अनेक तरह की अनर्गल और अवांछनीय टिप्पणियां की गई हैं , जिससे न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंची है। इस मामले में जिला अभियोजन अधिकारी एस के मिश्रा के आवेदन पर न्यायालय में इन चारों के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना का आपराधिक प्रकरण MJC (क्रिमिनल) 140/2025 दर्ज कर हुआ है। माननीय न्यायालय में 17 अक्टूबर 2025 को पेशी की तारीख नियत की गई है।
मिली जानकारी के मुताबिक दिनांक 06 मई 2025 को पीठासीन माननीय न्यायाधीश मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी सत्यानंद प्रसाद के द्वारा तिवारी दंपत्ति (अपीलार्थीगण) को 3-3 वर्ष के कठोर कारावास साथ ही 20-20 हजार के अर्थदंड से दण्डित करते हुए प्रार्थी को 25,50,000/- रूपये तीन माह के भीतर प्रतिकर के तौर पर धारा 357(ए) दंप्रसं के तहत में प्रदाय किये जाने का आदेश पारित किया है। इसके विरुद्ध जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में अपील प्रस्तुत किया गया है। इस अपील में माननीय न्यायालय और शासकीय अधिवक्ता के विरुद्ध कई तरह के अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं ।
डीपीओ श्री एस के मिश्रा ने माननीय न्यायालय ने अवमानना याचिका प्रस्तुत कर लेख किया है कि आरोपीगण द्वारा प्रस्तुत अपील में की गई टिप्पणियां अत्यधिक गंभीर किस्म के, आधारहीन, अपमानजनक तथा लांछनकारी एवं अनर्गल शब्दों का प्रयोग करते हुये तथ्यविहीन आरोप लगाये गये हैं जो न्यायालय के प्राधिकार पर लांछन लगाने तथा न्यायालय के प्राधिकार को कम करने जैसा है। उक्त प्रकरण में न्यायालय में लंबित मूल दांडिक प्रकरण कं. 2912/2022, छ.ग. राज्य विरूद्ध सुरेशचंद तिवारी एवं अन्य, धारा 420, 120 (बी) भारतीय दण्ड संहिता में संपूर्ण साक्ष्य लेखबद्ध कर तथा आरोपीगण को बचाव साक्ष्य का अवसर देते हुये संपूर्ण अभिलेख के अवलोकन उपरांत गुण-दोष के आधार पर आरोपीगण सुरेशचन्द्र तिवारी एवं उसकी पत्नी श्रीमती सुधा तिवारी को दोषसिद्ध किया गया है ।
माननीय न्यायालय एवं न्यायाधीश पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाने का नहीं बल्कि मामले में अपील करने की व्यवस्था है
कानून के जानकारों की माने तो किसी मामले में विचारण न्यायालय द्वारा अपराध सिद्ध पाया जाता है तो आरोपी को फैसले के विरुद्ध अपीलीय न्यायालय में अपील प्रस्तुत करने का विधिक अधिकार है ,किंतु न्यायालय या न्यायाधीश के विरुद्ध व्यक्तिगत और अपमानजनक आरोप नहीं लगाया जा सकता । यह भी व्यवस्था है कि किसी न्यायाधीश के विरुद्ध उचित फोरम पर शिकायत किया जा सकता है । किंतु फैसले से क्षुब्ध होकर अपमानजनक टिप्पणी करना न्यायालय के अवमानना की श्रेणी में आता है ।
न्यायालय ने जारी किया गया नोटिस
उपरोक्त अवमानकर्तागण को न्यायालय ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिनांक 17 अक्टूबर 2025 को जवाब प्रस्तुत करने का समय दिया गया है ।
अधिवक्ता कमलेश साहू का आपराधिक पृष्ठभूमि:–
अधिवक्ता कमलेश साहू सिविल न्यायालय पाली में अपने क्लाइंट को जमानत दिलाने हेतु एक मृत हो चुकी महिला के पुत्री को जमानतदार के रूप में माननीय न्यायालय में उपस्थित कर आरोपी को जमानत दिलवाया था, मामला माननीय न्यायालय के संज्ञान में आने पर पुनः दुस्साहस करते हुए माननीय न्यायालय से उस फर्जी महिला का फोटो निकाल कर दूसरी महिला का फोटो लगा दिया था। मामले में थाना पाली में धारा 420, 467, 468, 471, भादवि के तहत अपराध पंजीबद हुआ है । अधिवक्ता कमलेश साहू लगभग 02 माह तक जेल में रह चुका है।
माह जून 2025 में अपने क्लाइंट के विवादित मकान को अपने सहयोगी के नाम पर खरीद कर उस मकान को कब्जे का प्रयास किया था , इस दौरान एक महिला के साथ जबरदस्ती मारपीट एवं जबरदस्ती छेड़खानी किया था , जिस पर थाना कोतवाली कोरबा में आरोपी कमलेश साहू एवं अन्य के विरुद्ध मारपीट एवं छेड़खानी का मुकदमा दर्ज है ।
अधिवक्ता कमलेश साहू का मौसेरा भाई मुकेश साहू आदतन कबाड़ चोर है , जिसके मामलों में पैरवी के दौरान माननीय न्यायालय में कबाड़ सामग्रियों का फर्जी बिल प्रस्तुत किया जाता रहा है , एक मामले में माननीय न्यायालय ने फर्जी बिलों के जांच का आदेश किया है ।