Bastar Jagannath Rath Yatra 2023 : क्यों अनोखी है बस्तर की जगन्नाथ रथ यात्रा ? 600 सालों से निभाई जा रही ये ऐतिहासिक परंपरा.. VIDEO

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Bastar Jagannath Rath Yatra 2023 : Why is Bastar’s Jagannath Rath Yatra unique? This historical tradition is being followed for 600 years 

Bastar Jagannath Rath Yatra 2023 : बस्तर। श्रीगोंचा महापर्व पर भगवान जगन्नाथ बलभद्र और माता सुभद्रा को रथारुढ़ कर गोल बाजार का परिक्रमा कराया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। पूरे बस्तर जिले से लोग इस रथयात्रा को देखने पहुंचे।

आपको बता दे कि 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा पूरे विधि-विधान व रिती रिवाज के साथ पूजा अर्चना कर कार्यक्रम को संपन्न कराया गया। इस दौरान बस्तर महाराजा कमल चंद्र भंजदेव ने रथ सहित भगवान की पूजा अर्चना की और रथ को खींचा।

रथ यात्रा परिक्रमा के पश्चात भगवान जगन्नाथ बलभद्र एवं माता सुभद्रा 9 दिनों तक सिरासार भवन में विराजित होंगें वहीं भक्तों को भगवान के दर्शन लाभ प्राप्त होंगे ।

जगन्नाथ रथ यात्रा की पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता अनुसार कहा गया है कि है कि प्रभु जगन्नाथ श्रीमंदिर से निकलकर वर्ष में एक बार अपनी मौसी मां के यहां भ्रमण को जाते हैं, जिसे रथ यात्रा के दौरान 9 दिन के विश्राम को मौसी के यहां विश्राम कहा जाता है..जिसका प्रतिरूप सिरसार भवन को बनाया गया है।

क्यों अनोखी है बस्तर की जगन्नाथ रथ यात्रा ?

गौरतलब है कि बस्तर में भगवन जगन्नाथ रथ यात्रा देश के अन्य हिस्सों से बिल्कुल अलग तरीके से मनाई जाती है. इस पावन पर्व में तुपकी का अपना अलग महत्व है। बस्तर में भगवन जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान तुपकी से सलामी देने की परंपरा है। हर साल मनाए जाने वाले गोंचा रथ यात्रा में इस रस्म को पूरे रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। बस्तर में बंदूक को तुपक कहा जाता है। तुपक शब्द से ही तुपकी शब्द बना है। इसी तुपकी से रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को सलामी दी जाती है। बस्तर के लोग भगवान के प्रति आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से सलामी देते हैं।

तुपकी को फलों को भरा जाता है. इस फल को बस्तर की स्थानीय भाषा में पेंग या पेंगु कहते हैं. ये एक जंगली लता का फल है, जो आषाढ़ के महीने में पाया जाता है। इसे हिंदी भाषा में मालकांगिनी कहते हैं. तुपकी की गोली की रेंज 50 फीट तक होती है. तुपकी की नली में पीछे की तरफ से पेंग फल को भरा जाता है. इन फलों को तुपकी यानी बंदूक में बांस की बनी छड़ी की मदद से भरते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ को तुपकी से सलामी दी जाती है।

पेंग फल के बीजों से तेल भी निकाला जाता है, जो कई औषधीय गुणों से भरपूर है. इस तेल का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द, गठिया तथा वात रोगों के लिए दवा के रूप में किया जाता है। इसके तेल से शरीर की मालिश भी कर सकते हैं।

मान्यता के अनुसार, रियासतकालीन गोंचा पर्व में विग्रहों को सलामी देने की एक प्रथा थी। इसके स्थान पर बस्तर के ग्रामीणों ने इस तुपकी का अविष्कार कर उस प्रथा को आज भी कायम रखा है। बस्तर के लोगों का मानना है कि, गोंचा रथ यात्रा में तुपकी की मार, शरीर पर अवश्य पड़नी चाहिए जिससे शारीरिक समस्याएं स्वयं समाप्त हो जाती हैं।

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