Thursday, November 27, 2025

Chhattisgarh High Court decision : छत्तीसगढ़ हाई-कोर्ट ने पिता को अविवाहित बेटी का भरण-पोषण और शादी का खर्च देने का आदेश बरकरार रखा

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Chhattisgarh High Court decision : बिलासपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि पिता अपनी अविवाहित बेटी के भरण-पोषण (Maintenance) और विवाह के खर्च (Marriage Expenses) की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता। कोर्ट ने इसे पिता का पवित्र कर्तव्य और हिंदू पिता का नैतिक दायित्व बताया है।जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की खंडपीठ ने एक शिक्षक पिता द्वारा फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए यह आदेश सुनाया।

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हाईकोर्ट का फैसला और महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पिता को अपनी अविवाहित बेटी को:

  1. हर माह ₹2,500 भरण-पोषण राशि (जब तक शादी नहीं हो जाती)।

  2. शादी के लिए ₹5 लाख का खर्च देने का निर्देश दिया गया था।

कोर्ट ने अपने फैसले में निम्नलिखित प्रमुख टिप्पणियाँ कीं:

  • पिता का पवित्र कर्तव्य: “बेटी का पालन-पोषण, शिक्षा और शादी का खर्च उठाना पिता का पवित्र कर्तव्य है, जिससे वह इनकार नहीं कर सकता।”

  • कन्यादान नैतिक जिम्मेदारी: “कन्यादान करना हिंदू पिता का नैतिक जिम्मेदारी है।”

  • कानूनी आधार: कोर्ट ने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 3(बी)(ई) का हवाला दिया, जिसमें अविवाहित बेटी की शादी के खर्च को भी ‘भरण-पोषण’ की परिभाषा में शामिल किया गया है।

  • नज़ीर का हवाला: हाईकोर्ट ने पूनम सेठी बनाम संजय सेठी केस में दिए गए फैसले का भी जिक्र किया, जो पिता की इस जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।

 क्या था मामला?

यह मामला सूरजपुर की एक 25 वर्षीय अविवाहित युवती से संबंधित था।

  • याचिकाकर्ता: युवती ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी।

  • पृष्ठभूमि: युवती की माँ की मृत्यु के बाद, उसके सरकारी स्कूल में शिक्षक पिता ने दूसरी शादी कर ली और पहली बेटी की उपेक्षा करने लगे।

  • पिता की आय: पिता का मासिक वेतन ₹44,642 है।

  • पिता की अपील: फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पिता ने सुप्रीम कोर्ट के रजनीश बनाम नेहा केस का हवाला देते हुए अपील की थी कि दोनों पक्षों ने शपथ पत्र जमा नहीं किया, इसलिए आदेश गलत है।

हाईकोर्ट ने पिता के इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि, बेटी अविवाहित है और स्वयं का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है, इसलिए भरण-पोषण और विवाह खर्च पाना उसका अधिकार है।

पिता ने दिया कोर्ट को आश्वासन

सुनवाई के अंत में, पिता की ओर से हाईकोर्ट को आश्वासन दिया गया कि वह फैमिली कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए बेटी को मासिक भरण-पोषण राशि देगा और शादी के लिए ₹5 लाख की राशि तीन माह के भीतर जमा करा देगा।

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