Getting your Trinity Audio player ready...
|
नई दिल्ली। स्वामी सुरेन्द्र नाथ ने हाल ही में कहा कि हिन्दू समाज अक्सर अपनी धार्मिक पहचान और संस्कृति को खुलकर व्यक्त करने से कतराता है। उन्होंने कहा कि अन्य धर्मावलंबी अपने धर्म और धार्मिक अधिकारों के प्रति सजग रहते हैं और खुले तौर पर इसे प्राथमिकता देते हैं, जबकि हिन्दू ‘सेक्युलर’ दिखने की मजबूरी में अपने धर्म को पीछे छोड़ देते हैं।
स्वामी सुरेन्द्र नाथ के अनुसार, शास्त्रों में कहा गया है—धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। लेकिन हिन्दुओं में सहिष्णुता का भाव इतना अधिक है कि वे अपने धर्म का अपमान सहन कर लेते हैं। इस उदारता के चलते वे अपने स्वधर्म और संस्कृति को सार्वजनिक रूप से खुलकर अपनाने में हिचकते हैं।
उन्होंने महाभारत और भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने धर्म के पक्ष में खड़े होकर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया। इसका संदेश स्पष्ट है कि जीवन में अपने धर्म और आदर्शों के पक्ष में दृढ़ता से खड़ा होना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी सुरेन्द्र नाथ ने यह भी कहा कि गांधी जी और स्वतंत्रता काल के नेताओं ने धर्म को राजनीति का उपकरण बना दिया, जिससे हिन्दुओं में अपनी आस्था और हिंदुत्व को खुलकर अपनाने का आत्मविश्वास कम हुआ। आज का हिन्दू समाज अपने धार्मिक अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए सजग होने के साथ ही गर्व से इसे अपनाने की आवश्यकता महसूस करता है।
उनका संदेश है कि हिन्दू समाज को अपने भीतर छिपे संकोच और भ्रम को त्यागकर गर्व से कहना चाहिए—“हाँ, मैं हिन्दू हूँ और यही मेरी सबसे बड़ी पहचान है।”