Monday, October 20, 2025

पत्रकार को बीएमओ ने भिजवाया नोटिस, हमर उत्थान सेवा समिति ने जताया कड़ी आप्ति

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सूरजपुर। हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश साहू ने स्वास्थ्य विभाग की मनमानी को उजागर करने वाले पत्रकार कौशलेन्द्र यादव को भेजे गए कानूनी नोटिस की कठोर निंदा की है। साहू ने इसे पत्रकारिता की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला करार देते हुए कहा कि जब सच्चाई को सामने लाने वाले पत्रकारों को दबाने की कोशिश की जाती है, तो यह समाज के कमजोर वर्गों की आवाज को कुचलने का प्रयास है। उन्होंने मशहूर शायर मिर्जा गालिब की पंक्ति का जिक्र करते हुए तंज कसा: “दाग चेहरे पर थे गालिब, मैं उम्र भर आईना साफ करता रहा।” साहू ने इस शायरी के जरिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानसिकता पर सवाल उठाया, जो अपनी कमियों को सुधारने की बजाय सच्चाई का आईना (मीडिया) तोड़ने पर तुले हैं।

साहू ने लंबी भूमिका बांधते हुए कहा कि पत्रकारिता का धर्म है जनता की पीड़ा को शासन तक पहुंचाना और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना। लेकिन जब दबंग दुनिया दैनिक अखबार के ब्यूरो प्रमुख कौशलेन्द्र यादव जैसे पत्रकार, जो सामाजिक मुद्दों और जन सरोकार से जुड़े विषयों को प्रमुखता से उठाते हैं, उन्हें वकील के माध्यम से 50 लाख रुपये की मानहानि का नोटिस भेजकर डराने की कोशिश की जाती है, तो यह न केवल पत्रकारिता पर हमला है, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों को कमजोर करने की साजिश भी है। साहू ने इस नोटिस को “कायरतापूर्ण और शर्मनाक” करार दिया और ओड़गी के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (बीएमओ) डॉ. बंटी बैरागी पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी ऊर्जा गरीब कर्मचारियों की समस्याओं को हल करने में लगनी चाहिए, न कि सच्चाई को दबाने में। साहू ने पत्रकार यादव के साथ मजबूती से खड़े होने का ऐलान किया और जिला प्रशासन से इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की, ताकि पीड़ित की आवाज को न्याय मिले और पत्रकारिता की स्वतंत्रता बरकरार रहे।

यह विवाद बिहारपुर चांदनी हॉस्पिटल के एक गरीब स्वीपर की फरियाद से शुरू हुआ, जिसने स्वास्थ्य विभाग की मनमानी को उजागर किया। लेकिन अब यह मामला पत्रकारिता की आजादी और प्रशासनिक जवाबदेही के सवाल तक पहुंच गया है। आइए, इस पूरे प्रकरण की विस्तार से पड़ताल करें।

मामले की शुरुआत: स्वीपर की पीड़ा और आत्मदाह की चेतावनी

यह प्रकरण सूरजपुर जिले के बिहारपुर चांदनी हॉस्पिटल में कार्यरत स्वीपर सिंहलाल की दर्दनाक कहानी से शुरू हुआ। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले सिंहलाल, जिन पर दो छोटे बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी है, वर्ष 2022 से कलेक्टर दर पर हॉस्पिटल में सेवा दे रहे थे। लेकिन अचानक उन्हें इस दर से हटा दिया गया और जीवन दीप समिति के माध्यम से मात्र 5 हजार रुपये मासिक पर रखने का प्रस्ताव दिया गया। यह राशि उनके परिवार के लिए जीविका चलाने के लिए नाकाफी थी। मजबूर होकर सिंहलाल ने जिला कलेक्टर सूरजपुर को लिखित शिकायत सौंपी, जिसमें उन्होंने पुनः कलेक्टर दर पर बहाली की मांग की और चेतावनी दी कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे परिवार सहित सामूहिक आत्मदाह करने को विवश होंगे।

इसी शिकायत और प्रशासन तक पहुंची जानकारी के आधार पर दबंग दुनिया दैनिक अखबार के ब्यूरो प्रमुख कौशलेन्द्र यादव ने समाचार प्रकाशित किया। इस खबर ने स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा दिया, क्योंकि यह गरीब कर्मचारी के साथ हुई नाइंसाफी और विभाग की मनमानी को उजागर करती थी। यादव ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी की छवि खराब करना नहीं, बल्कि जनता की पीड़ा को सामने लाना था। उन्होंने कहा, “यदि शिकायत झूठी है, तो बीएमओ को पहले उस कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जिसने आवेदन दिया। लेकिन पत्रकार पर दबाव बनाना निंदनीय और गलत है।”

बीएमओ का जवाब: मानहानि का दावा और कानूनी नोटिस

खबर के प्रकाशन के बाद ओड़गी के बीएमओ डॉ. बंटी बैरागी ने अधिवक्ता समीद खान के माध्यम से पत्रकार कौशलेन्द्र यादव को कानूनी नोटिस भेजा। नोटिस में दावा किया गया कि प्रकाशित समाचार झूठा और आधारहीन है, जिससे उनके मुवक्किल की सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है। अधिवक्ता ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 और भारतीय दंड संहिता की धारा 499 का हवाला देते हुए 50 लाख रुपये की मानहानि का दावा ठोका और 15 दिनों के भीतर जवाब मांगा।

यह नोटिस स्पष्ट रूप से दबाव बनाने की रणनीति प्रतीत होता है, जहां बीएमओ अपनी छवि बचाने के लिए कानूनी हथकंडों का सहारा ले रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब शिकायत स्वयं पीड़ित कर्मचारी ने कलेक्टर को लिखित रूप में सौंपी थी और खबर उसी दस्तावेज पर आधारित थी, तो पत्रकार की गलती कहां है? क्या यह स्वास्थ्य विभाग की ओर से अपनी जिम्मेदारियों से भागने की कोशिश है?

स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल

यह पहला मौका नहीं है जब सूरजपुर जिले के स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आई हो। अक्सर कर्मचारियों और मरीजों की शिकायतें सामने आती रही हैं, लेकिन विभाग उन्हें अनदेखा करने या दबाने में लगा रहता है। अब प्रशासनिक शिकायतों को उजागर करने वाले पत्रकारों को नोटिस और मुकदमों की धमकी देना यह दर्शाता है कि विभाग अपनी कमियों को छिपाने और जवाबदेही से बचने की कोशिश कर रहा है।

लोकतंत्र में मीडिया का कार्य जनता और शासन के बीच सेतु बनना है। इस मामले में कौशलेन्द्र यादव ने ठीक यही किया – तथ्यों पर आधारित समाचार प्रकाशित कर अपना नैतिक दायित्व निभाया। दबंग दुनिया के ब्यूरो प्रमुख के रूप में यादव सामाजिक मुद्दों और जन सरोकार से जुड़े विषयों को लगातार उठाते रहे हैं, और इस खबर में भी उन्होंने एक गरीब कर्मचारी की पीड़ा को सामने लाया। लेकिन विभाग ने कमजोर कड़ी मानकर पत्रकार को निशाना बनाया, जो उनकी साख पर और सवाल उठाता है।

आगे क्या: प्रशासन की भूमिका पर टिकी नजरें

इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि पत्रकार ने कोई गलती नहीं की। समाचार पूरी तरह कलेक्टर को दी गई लिखित शिकायत और तथ्यों पर आधारित था। अब जिला प्रशासन के सामने सवाल है कि वह इस विवाद में किसका पक्ष लेगा – पीड़ित कर्मचारी और जनता की आवाज का, या बीएमओ के दबाव का। समाज की नजरें प्रशासन पर टिकी हैं कि क्या वह निष्पक्ष जांच करेगा और सच्चाई को सामने लाएगा। यह मामला न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता का सवाल है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत को भी रेखांकित करता है।

हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश साहू ने इस मामले को एक सामाजिक आंदोलन का रूप देने की बात कही और चेतावनी दी कि यदि पत्रकारिता को दबाने की कोशिशें जारी रहीं, तो समाज का हर वर्ग इसके खिलाफ एकजुट होगा। साहू ने कहा, “पत्रकार कौशलेन्द्र यादव ने सच्चाई का साथ दिया, और हम उनके साथ खड़े हैं। स्वास्थ्य विभाग को अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए, न कि सच्चाई को दबाने की कोशिश करनी चाहिए।”

हमर उत्थान सेवा समिति के माध्यम से शिकायत कलेक्टर को देकर , बीएमओ पर कार्यवाही की मांग भी की है। साथ ही मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

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