Friday, December 5, 2025

नान घोटाला…टुटेजा, आलोक शुक्ला, पूर्व-महाधिवक्ता पर नई FIR

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रायपुर.छत्तीसगढ़ के नान (नागरिक आपूर्ति निगम) घोटाले में EOW की ओर से सोमवार (4 नवंबर) को नई FIR दर्ज की गई है। घोटाले में रिटायर्ड IAS अफसर अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

ईओडब्ल्यू में 2015 में दर्ज नान घोटाले में आरोप है कि तीनों ने प्रभावों का दुरुपयोग कर गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया है। इसी मामले में 2019 में ईडी ने केस दर्ज किया है।

रिटायर्ड IAS अनिल टुटेजा शराब घोटाले केस में न्यायिक रिमांड पर रायपुर सेंट्रल जेल में बंद है।
रिटायर्ड IAS अनिल टुटेजा शराब घोटाले केस में न्यायिक रिमांड पर रायपुर सेंट्रल जेल में बंद है।

गवाहों पर दबाव बनाया, बयान बदलवाने की कोशिश

EOW (राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो) ने ED की ओर से भेजे गए प्रतिवेदन के बाद FIR की है। डॉ. आलोक और अनिल टुटेजा पिछली सरकार में प्रभावशाली माने जाते थे। इन अधिकारियों का 2019 से लगातार सरकार के संचालन नीति निर्धारण और अन्य कार्यों में खासा दखल था। शासन के महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापना और स्थानांतरण में भी उनका हस्तक्षेप होने की चर्चा थी।

ईओडब्ल्यू के अनुसार तीनों ने आपराधिक साजिश करते हुए ईओडब्ल्यू में पोस्टेड बड़े अफसरों के प्रक्रियात्मक और विभागीय कार्यों से संबंधित दस्तावेजों और जानकारी में बदलाव करने का प्रयास किया। वहां दर्ज नान के मामले में अपने पक्ष को हाईकोर्ट में पेश करने के लिए खुद जवाब दावा बनवाया, ताकि उन्हें अग्रिम जमानत का लाभ मिल सके। इतना ही नहीं तीनों ने केस से जुड़े गवाहों पर भी दबाव बनाया और बयान बदलवाने की कोशिश की।

ब्यूरोक्रेसी इनके नियंत्रण में थी

EOW ने अपनी FIR में बताया कि अनिल टुटेजा और डॉ. आलोक शुक्ला शासन में महत्वपूर्ण पदाधिकारी बन गए थे और यह सरकार के सबसे शक्तिशाली अधिकारी थे। सभी महत्वपूर्ण पदों पर पोस्टिंग और ट्रांसफर में इनका सीधा हस्तक्षेप था। एक तरह से कहा जाए कि छत्तीसगढ़ सरकार की सारी ब्यूरोक्रेसी इनके नियंत्रण में थी, जिसके कारण राज्य सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ अधिकारियों पर इनका नियंत्रण था।

वॉट्सऐप चैट से हुआ खुलासा

EOW ने अपनी FIR में बताया है कि डॉ. आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा से असम्यक लाभ लिया। उनका मकसद था कि सतीशचंद्र वर्मा को लोक कर्तव्य को गलत तरीके से करने के लिए प्रेरित किया जाए, ताकि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए सरकारी कामकाज में गड़बड़ी कर सकें।

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