रक्षक ही बन गए भक्षक? पंजीयन में हुआ फर्जीवाड़ा? कंप्यूटर ऑपरेटर ने क्यों लिया किसान के धान का पैसा?

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रक्षक ही बन गए भक्षक? पंजीयन में हुआ फर्जीवाड़ा? कंप्यूटर ऑपरेटर ने क्यों लिया किसान के धान का पैसा?

रायपुर – सक्ती जिले में अधिकांश खरीदी केंद्रों में संस्था प्रबंधक/ प्रभारी और कंप्यूटर ऑपरेटर अपने पद एवं अधिकार का दुरुपयोग करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं और अपनों को लाभ पहुंचाने में शासन को लगातार आर्थिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। इस तरह की गड़बड़ियों को देखने से लग रहा है कि रक्षक ही भक्षक बन गए हैं जो की शासन को लगातार चुना लगा रहे हैं।

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हम बात कर रहे हैं सक्ती जिले के जिला सहकारी केंद्रीय बैंक शाखा सक्ती अंतर्गत धान खरीदी केंद्र बरपाली की। बरपाली खरीदी केंद्र में वर्तमान में रूपेंद्र जायसवाल को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है जिनके द्वारा इस वर्ष धान खरीदी का कार्य संपन्न कराया गया है। लेकिन पूर्व में बरपाली में अपनों को लाभ पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। पूरा मामला खरीदी वर्ष 2014-15 एवं 2015 -16 का है।

प्राप्त जानकारी अनुसार वर्ष 2014-15 एवम् 2015 -16 में रूपेंद्र जायसवाल खरीदी केंद्र बरपाली में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर पदस्थ थे जिनके द्वारा किसानों का पंजीयन किया जाता था। खरीदी वर्ष 2014 – 15 में छवि शंकर जायसवाल जो कि वर्तमान में खरीदी केंद्र नगरदा में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर पदस्थ हैं के नाम पर दो-दो पंजीयन कर दिया गया जिसमें प्रथम पंजीयन में 72.80 और द्वितीय में 24.80 कुल 97.60 क्विंटल धान शासन द्वारा समर्थन मूल्य में विक्रय करने का लाभ दिया गया।

आखिर क्या कारण था कि एक ही व्यक्ति के नाम पर दो – दो अलग पंजीयन किया गया? क्या शासन द्वारा जारी नियम – निर्देशों में इस तरह के कार्य करने का कोई प्रावधान था या नहीं? इसकी जांच की आवश्यकता है।

इसके अलावा छबि शंकर के नाम पर जिस भूमि का खसरा नंबर दर्ज किया गया था वह आखिर किसके नाम पर राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज था? क्योंकि खरीद वर्ष 2015 -16 में उनका पंजीयन रकबा घट गया था और मात्र 72.80 क्विंटल ही धान का विक्रय किया गया है। खरीदी वर्ष 2022/23 और 2023/24 में भी कम है।

छबिशंकर के बाद एक और रिश्तेदार के नाम पर दर्ज भूमि किसकी?

खरीदी केंद्र बरपाली में वर्ष 2015 – 16 में रूपेंद्र जायसवाल के द्वारा एक और रिश्तेदार के नाम पर रकबा पंजीयन किया गया था। उक्त पंजीयन के आधार पर पजीकृत किसान ने समर्थन मूल्य का लाभ लेते हुए 130 क्विंटल धान का विक्रय किया था। इस वर्ष 39000 रुपए बोनस राशि का भी लाभ मिला है, जबकि उक्त पंजीकृत किसान के नाम पर जो भूमि दर्ज है उसका नाम सम्मिलात खाते में भाई के साथ दर्ज है जिसका पंजीयन स्वयं छबि शंकर जायसवाल के द्वारा किया जा रहा है और शासन के समर्थन मूल्य पर धान विक्रय करने का लाभ भी मिल रहा है।

ऐसे में उक्त किसान के द्वारा किसके नाम की भूमि का पंजीयन कराया गया, यह जांच का विषय है। हालाकि इस मामले में मीडिया को जानकारी देते हुए बताया है कि उनके द्वारा अधिया रेघा में अपनी दीदी के नाम की भूमि का पंजीयन कराया गया था और उस आधार पर विक्रय किया है। अब ये जांच होना चाहिए कि क्या उक्त किसान ने जिस भूमि का पंजीयन कराया था वह उनके बताए अनुसार उनकी दीदी के नाम पर राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है? और यदि दर्ज है तो उक्त भूमि का खसरा नंबर और रकबा क्या है इसकी भी जांच होनी चाहिए।

किसान का पैसा कंप्यूटर ऑपरेटर के खाते में हुआ ट्रांसफर

इसी बीच एक और बड़ी खबर आ रही है कि सक्ती शाखा अंतर्गत आने वाले एक और खरीदी केंद्र में बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है जिसमें किसान के द्वारा समर्थन मूल्य पर धान का विक्रय किया गया लेकिन धान की राशि कंप्यूटर ऑपरेटर के खाते में ट्रांसफर किया गया। कंप्यूटर ऑपरेटर के द्वारा ऐसे और भी कई किसानों से साथ मिलकर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है।

आखिर इस तरह दूसरे के नाम पर धान बेचकर अपने नाम पर राशि ट्रांसफर करने के मामले को लेकर अब रिश्तेदारी किस तरह की है यह सवालों पर आ गई है, इसीलिए यह कहना लाजमी है कि आखिरकार “यह रिश्ता क्या कहलाता है”।

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