B.Ed की क्लास या खेती की पाठशाला? कपूर चंद को किसने पहुंचाया दोहरा लाभ? क्या पटवारी सहित अन्य दोषियों पर होगी FIR?

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B.Ed की क्लास या खेती की पाठशाला? कपूर चंद को किसने पहुंचाया दोहरा लाभ? क्या पटवारी सहित अन्य दोषियों पर होगी FIR?

रायपुर – फर्जी रकबा पंजीयन कर धान बेचने के अनेकों मामले सामने आते ही रहते हैं। लेकिन इस बार हैरानी कर देने वाला मामला सामने आया है। अब ऐसे खसरा नंबर की भूमि पर भी धान का उपज किया जा रहा है जिसमें B Ed की पढ़ाई चल रही है।

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एक ब्यावसायी द्वारा अपने व्यवसाय को संचालित करने जिस खसरा नंबर की भूमि पर भवन बना कालेज चला रहा है। वहीं ब्यावसायी द्वारा बनाए गए भवन पर फर्जी रूप से धान की गिरदावरी कर दोहरा लाभ भी लिया जा रहा है। इस तरह के दोहरे लाभ पहुंचाने में हल्का पटवारी की पूरी संलिप्तता नजर आ रही है।

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हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले की, जहां सक्ती निवासी कपूर चंद अग्रवाल के नाम पर दर्ज भूमि पर लगभग पिछले सात सालों से B.Ed कॉलेज का संचालन किया जा रहा है। उक्त कालेज के संचालन के लिए अग्रवाल द्वारा अपने स्वामित्व की भूमि को व्यवसायिक मद परिवर्तन करते हुए भवन बनाकर एजुकेशन सोसायटी द्वारा कॉलेज का संचालन किया जा रहा है।

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लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि अग्रवाल द्वारा उक्त खसरा नंबर भूमि जिस पर कॉलेज संचालित है ऐसे नंबर की भूमि का भी धान विक्रय हेतु पंजीयन करा दिया गया और उक्त खसरा नंबर की भूमि पर धान की बिक्री भी कर दी गई।

षड्यंत्र की शुरुआत तो हालांकि भूमि स्वामी के द्वारा की गई है। लेकिन इस षड्यंत्र को सफल बनाने में पटवारी राम कुमार आजाद ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। पटवारी द्वारा उक्त खसरा नंबर की भूमि की गिरदावरी कर दी गई जिसमें पूर्व में ही भवन निर्मित है। आखिरकार पटवारी द्वारा जो गिरदावरी की गई वह वास्तव में किस आधार पर की गई?और इसके पीछे किसका सहयोग प्राप्त हुआ? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

पटवारी द्वारा जिस तरह से मौका जांच कर गिरदावरी करने की बात कही जा रही है, तो ऐसे में एक और सवाल उपजने लगा है कि क्या उक्त भूमि पर B.Ed कॉलेज के संचालन के लिए फर्जी दस्तावेज देकर कॉलेज के संचालन हेतु मान्यता ली गई है? और यदि फर्जी दस्तावेज के सहारे मान्यता लेकर कॉलेज का संचालन किया जा रहा है तो यह भी जांच का विषय है?

हालांकि एक ही खसरा नंबर भूमि का दो तरह का उपयोग कर पाना संभव नहीं है। इसलिए इस तरह के सवाल उठना लाजिमी है। जिस तरह से पटवारी और ब्यावसायी द्वारा एक ही जमीन पर दोहरा लाभ लेने का कार्य किया गया है यह किसी षड्यंत्र को दर्शाता है।

इस मामले में जिम्मेदार विभाग के साथ-साथ कॉलेज चलाने मान्यता देने वाली संस्थान को भी संज्ञान लेने की जरूरत है। यदि भवन निर्मित है तो फिर धान की फसल कैसे हो गई? और अगर धान की फसल हो रही है तो कॉलेज कैसे संचालित हो रहा है इसकी जांच की आवश्यकता है। जल्द ही इस मामले से जुड़े खबरों पर पूरे विस्तार से प्रकाशन किया जायेगा और मान्यता को लेकर जांच करने शिकायत भी की जाएगी।

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