कोरबा जिले में राखड़ से लोगों की जान को खतरा, जिम्मेदार बने मूकदर्शक…

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कोरबा जिले में राखड़ से लोगों की जान को खतरा, जिम्मेदार बने मूकदर्शक…

कोरबा – जिले में राखड़ की समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। पर्यावरण और एनजीटी के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ रही है। बावजूद जिम्मेदार विभाग के अधिकारी अपने दफ्तर से बाहर निकाल कर इस समस्या से लोगों को निजात दिलाने कार्रवाई नहीं कर रही है। नतीजा लोगों को मजबूरन अपनी जिंदगी दाव पर लगानी पड़ रही है और भविष्य में गंभीर बीमारी से भी लड़ना पड़ सकता है। ताजा मामला नकटीखार कचांदी नाला पूल का है।

आप देख सकते हैं इस वीडियो में, सड़क पर किस तरह से राखड़ बिखरा फैला हुआ है, जिस पर गाड़ियों के गुजरने से चारों तरफ सिर्फ धूल ही धूल नजर आ रही हैं, गुजर रही गाड़ियां भी नजर नहीं आ रही है, जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है और जनहानि होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय में ऐसा दृश्य कोरबा जिले के कई जगहों पर देखने को मिल रही है।

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जिले में जब से राखड़ परिवहन का कार्य शुरू किया गया तब से लेकर अब तक चारों तरफ सिर्फ राखड़ ही नजर आ रहे हैं। जिले में पावर प्लांट के राखड़ डैम से जितने प्रदूषण नहीं हो रहे थे उससे कहीं ज्यादा सड़कों पर राखड़ के परिवहन से प्रदूषण फैल रहा है। खुली गाड़ियों में राखड़ का परिवहन किया जाना इसका मूल कारण है।

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सूत्रों की माने तो किसी भी तरह की खुली गाड़ियों में राखड़ का परिवहन करना प्रतिबंधित होता है। कुछ ही दूरियों के लिए खुली गाड़ियों पर तारपोलिन से ढक कर परिवहन करना सही माना गया है। लेकिन जिले में लंबी दूरियां भी तय करनी हो तो भी खुली गाड़ियों में राखड़ परिवहन किया जा रहा है।

इसके अलावा जिन गाड़ियों में राखड़ का परिवहन किया जा रहा है। उन गाड़ियों में उनके भार क्षमता से भी अधिक मात्रा में राखड़ लोड कर परिवहन किया जा रहा है जिससे न सिर्फ परिवहन विभाग द्वारा जारी परमिट शर्तों का उल्लंघन हो रहा है बल्कि सड़के भी खराब हो रही है। ओवरलोड होने की वजह से राखड़ सड़कों पर गिर रही है जिसका दुषपरिणाम आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।

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वैसे तो सत्ता दल के नेताओं / जनप्रतिनिधियों सहित अन्य पार्टी के नेताओं द्वारा अपनी राजनीति चमकाने और मांगों को पूरा करने के लिए सड़क पर उतरकर आंदोलन जरूर करते हुए देखे जा सकते हैं। लेकिन राखड़ को लेकर अब तक जिले में ऐसा कोई आंदोलन देखने को नहीं मिला। आखिरकार इसे क्या माना जावे? क्या जिले में बड़े पैमाने पर चल रहे राखड़ के काम में सभी मिले हुए हैं? और क्या आगे भी मिलकर करने की योजना बना लिए हैं?

वैसे एक बात तो सही है कि राखड़ का जो कार्य चल रहा है, वह काफी बड़े पैमाने पर चल रहा है और इससे बड़ी मोटी कमाई भी हो रही है। संभवतः यही कारण है कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस मामले को लेकर अब तक सड़कों पर नहीं उतरे। लेकिन जनप्रतिनिधियों के इस तरह के चुप रहने से आम जनता राखड़ से त्राहिमाम – त्राहिमाम कर रही है।

अचरज वाली बात तो यह भी है कि राखड़ के ओवरलोड परिवहन करने वाले वाहनों को लेकर सड़कों पर वाहन चेकिंग के नाम पर जाल बिछाकर बैठे यातायात पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी – कर्मचारी और आरटीओ के नाम पर घूम रही वसूली टीम सहित जिला परिवहन अधिकारी मूकदर्शक बनकर चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। लेकिन कहावत है “जब पानी सर से ऊपर हो जाए तो कुछ ना कुछ करना पड़ता है” ठीक इसी तरह एक समय जरूर आएगा जब जनता ऐसे नेता, जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए आंदोलन करेगी।

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