कोरबा जिले में प्रशासनिक विफलता या फिर दोषी सरकार?

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Administrative failure or guilty government in Korba district?

रायपुर – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली ऊर्जाधानी कोरबा जिले में विकास की गाथा केवल कहने को रह गई है। यहां की अधिकांश जनता अपनी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं और तो और उनकी फरियाद के बाद भी समस्याओं को सुनने वाला भी कोई नही है। यही कारण है कि अब समस्याओं के निराकरण के लिए जनता को सड़क पर आकर आंदोलन करना पड़ रहा है।

दुर्भाग्य ही कहे कि इन समस्याओं को लेकर जब जनता सड़क पर उतरती है तो यही प्रशासन के लोग उस समस्या का निराकरण करने के लिए तत्पर भी हो जाते हैं। आखिर क्यों प्रशासन के जिम्मेदार अफसर अपने जिम्मेदारियां के प्रति उत्तरदाई नजर नहीं आ रहे हैं। आम जनता का इस तरह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की समस्या के लिए सड़क पर उतरना क्या प्रशासनिक विफलता का प्रमाण है? या फिर वह सरकार भी दोषी है जिसके नियंत्रण में पूरा प्रशासन है?

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर सभी पार्टी के नेता अपनी सरकार बनाने के लिए जनसंपर्क में लग गई है और लोगों के बीच सभा के माध्यम उन्हें अपनी ओर साधने में लगी है जिसमें कोरबा जिला भी अछूता नहीं है।

सूबे के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी कोरबा जिले के प्रवास पर रहे जिसमें उन्होंने विभिन्न कार्यों का लोकार्पण एवं नवीन कार्यों की घोषणा की। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली जिले की आम जनता अपने मूलभूत सुविधाओं को लेकर हलाकान हो रही है। सड़क, बिजली, शुद्धपानी और शुद्ध पर्यावरण के लिए आम जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है, चारों तरफ राखड़ और कोयले की धूल से लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

जनता सोचकर चुने अपना प्रतिनिधि…

वर्तमान सरकार पर बैठे मंत्री, और सत्ताधारी दल के विधायक और विपक्षी पार्टी के नेता भी आमलोगों की इस समस्याओं का निराकरण करने के बजाय चुप्पी साधे बैठी हुई है। आखिर जनता ने जिन्हें वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुना है वह प्रतिनिधि जनता की मांगों को पूरा कराने और उनके मूलभूत सुविधाओं में होने वाली समस्याओं को दूर करने क्यों आगे नहीं आ रहे हैं? इस पर जनता को विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि चुनाव को होने कुछ ही दिन शेष रह गए हैं और जनता फिर से 5 साल के लिए अपना प्रतिनिधि चुनेगी।

आपको बता दें कोरबा जिले की कोयलांचल नगरी में सड़क, बिजली और शुद्ध पेयजल और वातावरण की गंभीर समस्या है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण सर्वमंगला चौक से लेकर कुसमुंडा की ओर जाने वाली सड़क है जिसकी दूरी महज 4 किलोमीटर ही है लेकिन इसे तय करने में घंटो लग जाते हैं।

हालाकि सड़क की दुर्दशा को सुधारने पिछले 3 साल से ठेकेदार और विभाग के लोग लगे हुए भी हैं लेकिन वह अपने कार्य को पूरा कराने में पूरी तरह से नाकाम नजर आ रहे हैं जिसका खामियाजा आज भी कोरबा जिले की हर जनता को भुगतनी पड़ रही है।

सड़क की समस्या को लेकर वार्ड क्रमांक 57 की पार्षद सुश्री सुरती कुलदीप द्वारा कल चक्का जाम किया गया। चक्का जाम होने की खबर मिलते ही प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे और आनंद-फानन में मौके पर पहुंचकर तत्काल सुधार करने की और जल्द ही व्यवस्था ठीक करने का आश्वासन दिया गया जिसके बाद चक्का जाम को समाप्त किया गया।

राखड़ से दूषित हो रहे नदी और तालाब…

ऊर्जा नगरी होने के कारण कई सारे संयंत्र जिले में संचालित है। इन संयंत्रों से निकलने वाले राखड़ के निपटान को लेकर प्रबंधन के पास ठोस इंतजाम नहीं होने के कारण पिछले 3 वर्षों से सड़क मार्ग द्वारा खुले भारी वाहनों में राखड़ का परिवहन धड़ल्ले से जारी है। इसके अलावा कई जगहों पर गड्डो के भराव के लिए राखड़ का उपयोग किया जा रहा है, वही अवैध तरीके से नदी एवं तालाबों के आसपास भी राखड़ डंप कर दिया जा रहा है जिसके कारण नदी और तालाब जिस पर लोग निस्तारी करते हैं उसका भी जल दूषित हो रहा है।

ऐसा नहीं है की इसकी शिकायतें नहीं हो रही है बल्कि इसकी शिकायत बकायदा संबंधित विभाग के अधिकारियों के कार्यालय पहुंच रही है लेकिन शिकायत पर खास असर नहीं हो रहा है। यही कारण है कि अब राखड़ माफिया भी जिले में नजर आने लगे हैं।

SECL उत्पादन में अव्वल लेकिन मूलभूत सुविधा में फिसड्डी…

एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान कोरबा जिले में स्थापित है। वर्तमान में उत्पादन क्षमता के मामले में कोरबा जिला कीर्तिमान रच रहा है। लेकिन दूसरी तरफ एसईसीएल प्रबंधन द्वारा अपने ही बनाए गए कॉलोनी एवं आसपास बसे भू विस्थापित जगह पर लोगों को शुद्ध पेयजल एवं शुद्ध वातावरण बनाए रखने में नाकाम नजर आ रही है, यही नहीं बिजली और सड़क के मामले में भी एसईसीएल प्रबंधन पूरी तरह विफल है। एसईसीएल प्रबंधन की इस लापरवाही या यु कहे है की मनमानी की शिकायतें भी जिला के मुखिया तक लिखित में पहुंच रही है बावजूद स्थिति में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है।

अब सवाल यह आता है कि वार्ड पार्षद के चक्का जाम करने के बाद क्या जिम्मेदार विभाग और प्रबंधन के पास विशेष फंड की व्यवस्था हो गई या कोई विशेष टीम आ गई जिसके द्वारा इस समस्या को जल्द निराकरण कर दिया जाएगा? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। दोहरा चरित्र निभाने वाले प्रबंधन और ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों का चेहरा कब बेनकाब किया जाएगा? आज की खबर में बस इतना ही, अगली कड़ी में जिले में आम जनता की समस्याओं को प्रमुखता से दिखाएंगे।

विशेष रिपोर्ट….

गणेश साहू

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