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मनगवा/मध्यप्रदेश
सरकारी दावों और ज़मीनी सच्चाई के बीच का फर्क देखना हो तो मनगवा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कदम रखिए। यह वही अस्पताल है जो कभी सिविल अस्पताल कहलाता था, लेकिन आज बदहाली की भेंट चढ़कर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के नाम पर सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति कर रहा है।
ना डॉक्टर, ना इलाज – बस जर्जर दीवारें और कचरों का साम्राज्य…
30 बिस्तरों का अस्पताल कचरे के ढेर में बदल चुका है न तो यहाँ डॉक्टर रहते हैं, न ही ज़रूरी दवाइयाँ मिलती हैं जांच सुविधाएँ तो नाम मात्र की हैं हालत इतनी बदतर है कि ईलाज के लिए आये मरीज और परिजन अपने सिर पकड़कर लौट जाते हैं।
सिविल अस्पताल का बोर्ड उतारकर लगा दिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र…
2001 तक यह अस्पताल इलाके की जान माना जाता था लेकिन स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की बेरुख़ी ने धीरे-धीरे इसकी सांसें छीन लीं डॉक्टर नदारद हुए, सुविधाएँ गायब होती गईं और आखिरकार अधिकारियों ने बोर्ड बदलकर इसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना दिया और मज़े की बात नेताओं ने भी इसकी बर्बादी पर चुप्पी साध ली।
रात में डॉक्टर नहीं – चपरासी ही पूरे अस्पताल का सर्वेसर्वा….
मनगवा नगर से दो-दो राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं रोज़ाना सैकड़ों वाहन दौड़ते हैं, दुर्घटनाएँ होना आम बात हैं ईलाज के लिए यहाँ ट्रॉमा सेंटर होना चाहिए था, लेकिन हकीकत यह है कि रात में अस्पताल सिर्फ चपरासी के भरोसे चलता है सोचिए, जब एक्सीडेंट पीड़ित तड़पते हुए यहाँ पहुँचते होंगे तो उनका इलाज कौन करता होगा? शासन प्रशासन से बड़ा सवाल है?
नियुक्त तीन डॉक्टर, लेकिन हाज़िरी सिर्फ कागज़ पर….
सरकार ने यहाँ तीन डॉक्टरों की नियुक्ति की है, लेकिन तीनों मुख्यालय से सिर्फ चक्कर लगाकर चले जाते हैं हकीकत में कोई भी डॉक्टर यहाँ ड्यूटी पर नहीं ठहरता सरकारी आदेश धरे के धरे रह जाते हैं और स्थानीय जनता की जान दांव पर लगी रहती है।
जनता का सवाल – कब जागेगा स्वास्थ्य महकमा?
मनगवा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में अस्पताल को ट्रॉमा सेंटर बनाना ज़रूरी है लेकिन शासन प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा गहरी नींद में है जनता पूछ रही है आखिर उनकी ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों है? जब सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं पर करोड़ों खर्च होने का दावा करती हैं तो मनगवा जैसे कस्बों के लोगों को मरने के लिए क्यों छोड़ दिया जाता है