Thursday, November 13, 2025

बच्चों के विकास के लिए स्कूल में आए सरकारी पैसों को डकार गए पंचगवां के मास्टर साहब?

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हमारे देश में शिक्षा की लड़ाई दशकों पुरानी है पहले तो लोग शिक्षा पाने के लिए लड़ाई लड़ते रहे फिर जब सबको समान रुप से शिक्षा मिलने लगी तो फिर लड़ाई प्राइवेट और सरकारी शिक्षा की शुरू हो गयी. अब हमारा छत्तीसगढ़ हो या फिर देश का कोई भी राज्य सभी जगह प्राइवेट या सरकारी शिक्षा को लेकर चर्चा आम है, कुछ एकाएक स्कूलों को छोड़ दें तो ज्यादातर सरकारी स्कूलों में गरीबी रेखा कार्ड वाले बच्चे ही जा रहे हैं. जिनके पास थोड़ा भी धन हैं वे अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उनको प्राइवेट स्कूल ही भेज रहे हैं. क्योंकि प्राइवेट स्कूल में फीस भले ही ज्यादा होती है लेकिन बच्चों के शिक्षा के लिए सुविधाएं भी आपको बेहतर देखने के लिए मिलती हैं. वहीं हम सरकारी स्कूलों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में विकास के लिए जो सरकारी पैसे आते हैं उसको समितियां या फिर विभागीय कर्मचारी डकार जाते हैं और अपने अधिकारियों से सेटिंग कर फर्जी बिल्स पास करा लेते हैं. इन सरकारी रकम से स्कूल का विकास हो ना हो मास्टर साहेबों विकास जरुर होता है.

जांजगीर चांपा जिले के पंचगवां स्कूल का है मामला

एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने पंचगवां स्कूल में वर्ष2021से2024 वर्ष तक स्कूल में आए मदों की जानकारी चाही थी. मास्टर साहब ने बड़ी ही इमानदारी से 50 पन्नों का की जानकारी भी दी. लेकिन उन जानकारी में विकास नहीं दिखा. ये कुछ बिल्स की छायाप्रति है जिसे आप भी देख सकते हैं

 

इन बिल्स में गौर करने वाली बात यह है कि इन साहब ने स्कूल की लिपाई पोताई के लिए का बिल लगाया है जबकि सरकारी नियम ऐसा है ही नहीं, इस काम के लिए इनते तक का ही मान्य होता है

और खास बात यह भी रही कि मास्टर साहब ने स्कूल में आए इनते रूपयों का तो सिर्फ चाय नाश्ता कर लिया है.
बिल्स

उपर दिए बिल्स में आपने ध्यान दिया होगा कि स्कूल जांजगीर चांपा में स्थित है लेकिन यह बिल्स कोरबा से बनाए गए हैं इन बिल्स में तारीख भी नहीं लिखी गयी है, इससे यह बात साबित होती है कि ये सारे बिल्स चालू बिल हैं. जिसे तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया गया है, और इन कामों में आला अधिकारी भी बिना जांच किए बिल्स को अपनी फाइलों में दबा दिए हैं.

जानकारी में एक बात और पूछी गयी थी कि कुर्सी टेबल का कितना लेनदेन हुआ लेकिन उसका जवाब तो आया ही नहीं और पेंटिंग वाले बिल्स के बारे में पूछने पर हेडमास्टर साहब का कहना है कि अधिकारियों के कहने पर ऐसा बिल लगाया गया है.

खबर पढ़ आप ही फैसला करें कि सरकारी स्कूलों के विकास ना होने के पीछे बड़ी वजह क्या है?

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